अनुवाद
अध्याय :- सात
अनुवाद
आभा
वरिष्ठ
साहित्यकार निशिकांत ठकार के अनुसार अनूदित साहित्य की समीक्षा के प्रतिमान,मानदंड विधि निषेध के नियम,मूल्यांकन निकष निश्चित नहीं किए जा सकते क्योंकि
इनका संबंध भाषाविज्ञान,चिह्न
मीमांसा,शैली
विज्ञान,साहित्य
समीक्षा और संस्कृति अध्ययन आदि अनेक अनुशासनों से आता है। बहुत बार तो यह होता है
कि प्रत्यति साहित्य-समीक्षा के निकषो के आधार पर ही यह समीक्षा की जाती है। स्रोत
भाषा का ज्ञान समीक्षक को प्रायः नहीं होता
है। लक्ष्य भाषा में उसका पुनर्वास हो जाने पर उसे लक्ष्य भाषा की ही रचना माना
जाता है और आम तौर पर सामान्य समीक्षा प्रणालियों के आधार पर उसकी समीक्षा की जाती
है। उसे वाच्यार्थ में ही अनूदित साहित्य की समीक्षा कहा जा सकता है। मगर मेरी लिए
विमलाजी द्वारा अनूदित इस उपन्यास "आभा" का
राजस्थानी अनुवाद “चार खूंट न
दो पासा” समझने में
ज्यादा दिक्कत नहीं हुई क्योंकि राजस्थान के ग्राम्याञ्चल में पैदा होने के कारण
राजस्थानी भाषा का मूलभूत ज्ञान अवश्य था।
हिंदी व
सिंधी भाषा में नंदलाल इदनदास परसारामानी जी
के राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के आर्थिक सहयोग में एलोरा प्रिंटर्स एंड
पब्लिशर्स,जयपुर
द्वारा प्रकाशित व पुरस्कृत उपन्यास “आभा” का डॉ॰
विमला भण्डारी ने राजस्थानी में “चार खूंट न
दो पासा” के नाम से
अनुवाद किया है जिसे राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर के आंशिक
आर्थिक सहयोग से राजस्थानी ग्रंथागार,जोधपुर ने प्रकाशित किया। अनुवाद की प्रक्रिया अत्यंत जटिल होती है,मगर एक भाषा से से दूसरे भाषा में सेतु बंधन का कार्य
करती है, जिससे दोनों
भाषाओं के शब्द-भंडार में बढ़ोतरी होती है। राजस्थान के कई ऐसे शब्द आबकाई (मुसीबत)
कजाणे (कौन जाने), खुलासा
(स्पष्टता), भीत (दीवार), मोटियार (जवान) आदि हिंदी भाषा में समानार्थक के रूप
में इस्तेमाल किए जा सकते है।
उपन्यास के
कथानक बीमार पिता जीवन लाल,उनकी
वृद्ध पत्नी,दो जवान
लड़कियां रति और आभा के चरित्र के इर्द-गिर्द घूमता है। अल्प आय के कारण रति को
पढ़ाई छोड़कर नौकरी करनी पड़ती है। जवान लड़की का नौकरी करना तत्कालीन समाज को रास
नहीं आता है। तब से इस छोटे परिवार का अपने समाज के साथ संघर्ष प्रारम्भ हो जाता
है।दोनों लड़कियों ने सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर सभी विपरीत परिस्थितियों का साहस
पूर्वक सामना करती है। समाज की नकारात्मक सोच,वातावरण का भोगवादी होना,नौकरी पेशा
महिलाओं के प्रति पुरुष वर्ग की अशोभनीय भाव-भंगिमा निकटता का दुरुपयोग आदि देख और
सुनकर पाठकों का मन विचलित हो जाएगा।
'चार खूंट न दो पासा, केवल एक उपन्यास मात्र ही नहीं है,परंतु आज के परिवेश में भोगवादी माहौल पर एक सबल प्रहार है। मध्यम वर्ग की
महिलाएं घर छोड़कर बाहर काम करने की इच्छुक है,उनके ही पिता,भाई,चाचा अथवा निकटतम पुरुष,अन्य कार्यरत महिला सहयोगियों के साथ आचरण करते समय
कैसी मनोवृत्ति होती है, हमारी सुसंस्कृत
भारतीय समाज के सामने एक ज्वलंत प्रश्न है।
यद्यपि यह
उपन्यास कल्पना पर आधारित है एक फिल्मांकन की तरह,मगर हमारे समाज के समक्ष अनेक ज्वलंत प्रश्न छोड़ जाता है। रति और आभा दो
बहिनें है, उनके पिता
है जीवन लाल एक वृद्ध व्यक्ति। जिनकी पत्नी आत्महत्या कर लेती है,किसी सेठ मुरारी लाल की हवस का शिकार होने के कारण ।
उसी सेठ का बीज होता है रमेश। ये लोग किराए पर रहते है, जहां रमेश का आना जाना-होता है। रति और आभा रमेश को
अपना भाई मानती है,मगर ताज्जुब
तो तब होता है जब वह रति का अपने बॉस शर्मा के साथ सौदा करता है। जैसे-तैसे कर रति
अपने आपको बचा लेती है, मगर रमेश उसकी नजरों से गिर जाता है। फिर श्याम का उस
घर में आना-जाना होता है, धीरे-धीरे
वह रति के प्रति आकृष्ट हो जाता है। मगर श्याम के पिता पुरुषोत्तम दाज किसी सेठ
मुरारी लाल के दबाव में आकर उसकी लड़की शोभा के साथ सगाई कर देता है। सेठ मुरारी
लाल अपनी अय्याशी के दौरान किसी महिला को (जीवन लाल की पत्नी) मरणासन्न अवस्था में
जब पुरुषोत्तम उसकी मदद करता है तो वह फोटो खींचकर उसे ब्लैकमेल करता है। अपने
पिता के अय्याश आचरण को देखकर शोभा किसी गुंडे आदमी के साथ प्यार करने लगती है वह
श्याम से हुई सगाई को तोड़ देती है। इस प्रकार श्याम और रति एक दूसरे के और ज्यादा
नजदीक आ जाते है।
आभा (रति की
छोटी बहिन) कुशाग्र बुद्धि वाली है। उसे प्रोफेसर सुमन और उनकी धर्मपत्नी का
वरद्हस्त प्राप्त होता है। प्रोफेसर सुमन के मार्गदर्शन में शोध करने वाली विश्राम
की मुलाकात आभा से होती है और उसे पहली नजर में प्यार हो जाता है। उसी दौरान रति
से हुई बेइज्जती का बदला लेने के शर्मा रमेश के साथ मिलकर आभा का अपहरण कर लेता
है। मगर रमेश इस बार आभा की इज्जत बचाता है और शर्मा की अच्छी खासी धुनाई कर देता
है । वह घटना जब विश्राम को पता चलती है तो वह आभा के चरित्र पर उंगली उठाने लगता
है तथा रमेश,श्याम और
यहाँ तक कि प्रोफेसर सुमन पर भी आरोप लगाता है। इस वजह से मानसिक तनाव के कारण आभा
बीमार हो जाती है,यहाँ तक कि
वह मरणासन्न अवस्था में पहुँच जाती है। जब विश्राम को सारी कहानी सच सच पता चल
जाती है तो वह आभा के पास जाकर माफी मांगता है और अपनी भूल स्वीकार करता है। यह
सारी कहानी आभा के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। उपन्यासकार ने अपनी
रचना-प्रक्रिया के दौरान समाज के उस यथार्थ को सामने लाने का प्रयास किया है, जिसे पढ़कर पाठक यह अनुभव कर सकता है, कि उपन्यास के सारे पात्र और कहीं नहीं उसके
इर्द-गिर्द ही विचरण कर रहे है। अनुवादिका ने राजस्थानी भाषा में उस संवेदनशीलता
को शत-प्रतिशत उतारने को कोशिश की है।
“वह असत्य
असत्य नहीं जिससे किसी की हानी नहीं होती” ।
“दान मांगा
नहीं जाता,भीख मांगी
जाती है। भीख भिखारी मांगा करता है” ।
“विवाह प्रेम
का मकसद है और समाज के द्वारा प्रेम प्राप्ति की अनुमति”।
“यदि स्त्री
अपनी पुरुष को नहीं पहचान सकी तो उसके स्त्रीत्व का महत्त्व-नगण्य रह जाता है” ।
“वह
भली-भाँति इस सच से परिचित था कि ब्रह्मांड में कहीं भी वह स्थान नहीं है जहां
धरती और आकाश मिलते हैं, परंतु फिर
भी यह भ्रम उसे अच्छा लगा।”
“प्यार तो
आत्मा है दादा, आत्मा देह
से अलग है। इसका अस्तित्व अलग है”
डॉ विमला भण्डारी द्वारा राजस्थानी में अनूदित इस
उपन्यास तथा नंदलाल पारसमानी की मौलिक कृति ‘आभा’ दोनों को एक
साथ पढ़कर भाषा विज्ञान, चिह्न
मीमांसा, शैली
विज्ञान, संस्कृति
अध्ययन आदि आदि इस पुस्तक पर मैंने अपनी पाठकीय प्रतिक्रिया व्यक्त की। दोनों
भाषाओं में इस उपन्यास के अध्ययन के दौरान मैंने पाया कि राजस्थानी और हिन्दी
साहित्य में अपनी-अपनी परंपरा,पर्यावरण व
विश्व-दृष्टि के कारण अपनी-अपनी विशेषताएँ है। दोनों भाषाओं का समन्वय साहित्यिक
दृष्टि से श्रेष्ठ है । अनूदित रचना भी मूल रचना से उसका महत्त्व,प्रभाव,साहित्य-परंपरा में स्थान,चयन का
प्रयोजन सबकुछ स्वतः प्रकट हो जाता है। अतः यह रचना राजस्थानी भाषा जानने वालों को
निश्चित रूप से प्रभावित करेंगी,साथ ही साथ,हिन्दी पाठकों को भी।
पुस्तक :-
चार खूंट न दो पासा
प्रकाशक :- राजस्थानी ग्रंथागार,जोधपुर
प्रथम संस्करण:- 2005
मूल्य :- 100/-
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