बातें-मुलाकातें
अध्याय:- तेरह
बातें-मुलाकातें
फेसबुक से:-
बातें-मुलाकातें
......प्रख्यात लेखिका विमला भण्डारी से बात करनी है तो सिर उठाना होगा...
वर्ष 2014 उत्तरकाशी में आयोजित राष्ट्रीय
बालसाहित्य संगोष्ठी में अचानक मुझे कहा गया था कि अपनी कोई बाल विज्ञान कहानी
पढ़नी है। उस पर बच्चे और फिर सदन टिप्पणी करेगा। मुझे याद है कि हल्का-फुल्का
ड्राफ्ट लेकर मैं वहां था। पूर्व रात्रि पर मैंने उस कहानी को प्रदीप बहुगुणा दर्पण, मोहन चैहान, सतीश जोशी एवं अन्य साथियों के साथ साझा किया था। सभी ने कहा कि इसे पढ़ा
जाना चाहिए। प्रस्तुति से पहले न जाने क्यों मुझे सदन में लगा कि अधिकतर
टिप्पणियों के साथ एक महिला रचनाकारा की टिप्पणी होनी चाहिए। मैं चाहता तो रेखा
चमोली जी से कह सकता था। लेकिन वह तत्काल उस समय बुक स्टाल पर थीं। वह बेहद करीबी
हैं, सो यह भी हो सकता
था कि वह लिहाज करते हुए सकारात्मक टिप्पणी करती। मैं सीधे एक महिला के पास जा
पहुंचा। साड़ी में, बाकायदा
भारतीय नारी के सभी लक्षणों से युक्त,सभी प्रकार के भारतीय गहनों-श्रृंगार से सजी-धजी महिला थीं वह। मुझे लगा
पारम्परिक ग्रामीण क्षेत्र से होंगी, सो टिप्पणी में भी ग्रामीण दर्शन एवं विचार झलकेंगे। मैंने उन अपरिचित
महिला के बेहद नजदीक जाकर कहा-‘आपको
मेरी कहानी के वाचन के बाद तटस्थ टिप्पणी करनी है।’ वह हौले से मुस्कराई। मैंने इत्मीनान से कहानी पढ़ी। फिर कई बच्चों ने उस
पर टिप्पणी की। सदन में ख्यातिलब्ध संस्कृतिकर्मियों के अलावा कई बालसाहित्यकारों
ने टिप्पणी की। फिर वह भी उठीं और बेहद सशक्त आवाज में, धाराप्रवाह और कहानी के सकारात्मक पहलूओं पर वह एक के बाद एक प्रशंसा के
फूल मानों मुझ पर बरसा रही थीं। जी हाँ। वह विमला भण्डारी जी थीं। मेरी पहली
मुलाकात। नाम सुना था। बहुत सुना था। राजस्थान के बाल साहित्य में ही नहीं, हिन्दी में भी और लोक साहित्य के साथ
महिला विमर्श ही नहीं राजनीति में भी विमला भण्डारी जी वहां जाना पहचाना नाम है।
मुझे याद नहीं कि मैंने अपने इस निवेदन के उपरांत उन्हें धन्यवाद भी शायद ही दिया
हो। बहरहाल। उसके बाद फेसबुक में ही पता चला कि उन्हें साहित्य अकादमी ने भी
सम्मानित किया। फिर पता चला कि वह भी बाल साहित्य पर वृहद आयोजन कराती हैं। फिर
पता चला कि वह पत्रिकाओं के संपादन से भी जुड़ी रहती हैं। उन्होंने विगत वर्ष
मधुमती के बालसाहित्य का संपादन भी किया।मैंने उन्हें फेसबुक पर ही पत्रिका के
संबंध में बात की थी। उन्हें याद रहा।इस साल बालसाहित्य संगोष्ठी में वह मेरे लिए
मधुमती का वह विशेषांक साथ लेकर आई थीं। यही नहीं, उन्होंने अपने घर के आंगन मे लगे पेड़ का आम भी मुझे हौले से दिया।
पहाड़ में आम देर से पकते हैं। जून के पहले ही सप्ताह में चूसने वाला आम वो भी शहद
से मीठा। उस मीठेपन की महक और जायका अब भी जीभ पर जैसे कायम हो। विमला भण्डारी जी की यह आत्मीयता मुझे ही क्या
सभी को अच्छी लगती। इस बार उन्होंने डॉ॰ मो॰ साजिद खान साहब और गोविन्द शर्मा जी द्वारा पढ़ी गई कहानी पर अपने
विचार रखे। सदन में वह पूरी तन्मयता के साथ बैठी रहीं। अन्य सत्रों में भी
उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए। वह भी समय-समय पर बाल-साहित्य, महिला-विमर्श और समसामयिक लेख लिखती रहती
हैं। राजस्थान के राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में वह बढ़चढ़ कर सहभागिता
करती हैं। वह न केवल मिलनसार हैं। भावुक भी हैं। प्रकृति के प्रति, बच्चों के प्रति वह बेहद संवेदनशील हैं।
मजेदार बात यह है कि उनके पति भी उनके साथ रहते हैं। उनका पूरा साथ देते हैं। सरल
मन की,भाव वाली विमला जी
हर पहली मुलाकात को इतना गंभीर और दिलचस्प बना देती हैं कि कोई भी अपरिचित यह नहीं
सोचता है कि हम किसी से पहली बार मिल रहे हैं। उनका लोकतत्वों पर, आंचलिकता पर जितनी पैठ है, उतना ही वह अन्य प्रान्तों की लोक
संस्कृति के प्रति अध्ययनरत रहती हैं।वह बेबाक टिप्पिणियां भी कर लेती हैं। वह यह
नहीं सोचती कि उनकी साफगोई से कोई नाराज भी हो सकता है। लेकिन वह इरादतन किसी पर
छींटाकशी नहीं करती। लोकोन्मुखी व्यवहार ही उनका कद बेहद बड़ा कर चुका है। हम
उन्हें सर उठाकर देखना चाहेंगे। इतना कि हमें आसमान में देखना पड़े तब जाकर उनका
चेहरा दिखाई देगा। ऐसा ही होगा। मुझे उम्मीद है और आपको?-
मनोहर चमोली ‘मनु’,
मुलाकात विमला भंडारी जी से:
उदयपुर में 19 जुलाई की शाम विमला भंडारी जी से मुलाकात
करते हुए बीती। न्यू भूपालपुरा में सौरभ एन्क्लेव में उनके फ्लैट में
डॉ.लक्ष्मीलाल वैरागी के साथ हम विराजमान थे। डॉ.वैरागी, विमला जी से पहले से परिचित थे। पर मिल पहली बार रहे थे। वैसे मेरी उनसे
यह तीसरी मुलाकात थी। पर सच कहूं तो वास्तविक रूप से पहली ही। पहली दो केवल नमस्ते
वाली मुलाकातें थीं। विमला जी यूं तो बरसों से साहित्य के क्षेत्र में हैं, पर पिछले कुछ समय में बाल-साहित्य में एक
गंभीर रचनाकार के रूप में उन्होंने अपनी जगह बनाई है। पिछले बरस का उनका एक किशोर
उपन्यास ‘सितारों से आगे’ नेशनल बुक ट्रस्ट,
इंडिया से प्रकाशित हुआ है। राजस्थानी भाषा की
पुस्तक ‘अलमोण भेंट’ को राजस्थानी भाषा, साहित्य व संस्कृति अकादमी ने जवाहरलाल
नेहरू बाल साहित्य पुरस्कार दिया है। इसे ही साहित्य अकादमी दिल्ली ने भी पुरस्कृत
किया है।नेशनल बुक ट्रस्ट से हाल ही में एक और किताब आई है...किस हाल में मिलोगे
दोस्त( संभवतः किताब का यही नाम है)। यह छह से आठ साल की आयुवर्ग के पाठकों के लिए
एक कहानी है। उनके आग्रह पर मैंने वहीं बैठे-बैठे किताब पढ़ डाली। फिर उन्होंने उस
किताब पर अपने सात साल के नाती आयुष की प्रतिक्रिया बताई और फिर मेरी प्रतिक्रिया
पूछी। मजेदार बात यह है कि आयुष की बातों से मुझे अपनी बात कहने में मदद मिली।
कहानी है कि एक पेड़ से दो तरह का कागज बनता है, चिकना और अखबार का। दोनों के बीच मित्रता है। लेकिन दोनों बहुत जल्दी
बिछुड़ जाते हैं। चिकने कागज पर स्कूल की किताब छपती है, किताब एक बच्चा खरीदता है और उस पर अखबार का कवर चढ़ाता है। दोनों मिल
जाते हैं। किसी कारण से फिर बिछुड़ते हैं, फिर मिलते हैं। यह क्रम चलता रहता है। इस क्रम में यह रोचक तरीके से आता
है कि अखबारी कागज की यात्रा कितने पड़ावों से गुजरती है। कहानी में यह जिज्ञासा
भी बनी रहती है कि अब आगे क्या होगा। पर किताब में कहानी का अंत मेरे हिसाब से
बच्चों को हल्का-सा मायूस करने वाला है। आयुष ने भी अपनी नानी से कहानी के इस अंत
पर ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी। विमला जी ने उससे चर्चा की और एक लेखिका के तौर पर
वे अपने नन्हें और पहले पाठक को संतुष्ट करने में सफल भी रहीं। लेकिन हम ठहरे
तथाकथित समीक्षक, सो हमारी राय में
कहानी को जिस पड़ाव या कि मोड़ पर रुक जाना चाहिए था, वह उससे आगे चलती जाती है। और यह उसमें एक तरह की बोझिलता पैदा करती है।
बहरहाल किताब अपने कथ्य, उसके
कहने के सलीके और चित्रों के वजह से नन्हें पाठकों के बीच पसंद की जाएगी, ऐसी मेरी राय है। विमला जी ने सलूम्बर के
इतिहास पर बरसों की मेहनत के बाद एक शोध पुस्तक की रचना की है। उसका प्रकाशन भी
हुआ है। उनका राजनीति में भी दखल रहा है। वे उदयपुर जिला परिषद की निर्वाचित सदस्य
रही हैं। पर अब वे अपना समय बाल साहित्य के लेखन में लगाना चाहती हैं। उनके पति
जगदीश जी व्यवसायी हैं, लेकिन
विमला जी उन्हें अपने लेखन रथ के सारथी यानि कि कृष्ण के सारथी रूप में देखती हैं।
वे कहती हैं कि जब-जब मैं कहीं अटक जाती हूं, जगदीश जी ही मुझे राह दिखाते हैं। मेरे लेखन में वे हर पल साथ हैं।
उन्हें अपने लेखन पर विगत डेढ़ साल में लगभग सात सम्मान-पुरस्कार मिले हैं।
सम्मानित होने वाले क्षणों में जगदीश जी तो उनके साथ रहे ही हैं, परिवार के अन्य सदस्य जिनमें बेटा, बहू, बेटी और दामाद भी शामिल होते रहे हैं। स्वर्गीय डॉ. श्रीप्रसाद से उनके
भोपाल प्रवास के दौरान मैं कई बार मिला हूं। उन्होंने बच्चों के लिए लगभग दस हजार
कविताएं लिखी होंगी। उनका नियम था कि वे हर रोज सुबह कम से कम दस फुलस्केप पन्ने
लिखते थे। वह एक तरह से उनका कच्चा माल होता था, जिसे बाद में परिष्कृत करते रहते थे। विमला जी ने मुझे श्रीप्रसाद जी की
याद दिला दी। विमला जी कहती हैं, ‘मैं
अपनी विभिन्न जिम्मदारियों के बीच हर रोज एक निश्चित समय एक घंटे अपने लैपटॉप पर
लिखती हूं। यह मेरा नियम है।’ इन
दिनों वे एक उपन्यास पर काम कर रही हैं।निश्चित ही और भी ऐसे लेखक होंगे जो अपने
लेखन को प्रतिदिन की एक आवश्यक दिनचर्या का हिस्सा मानते हैं। जाहिर है कि जब वह
उनकी दिनचर्या का हिस्सा होगा तो वह मन और तन की तरह स्वस्थ्य और ऊर्जावान भी
रहेगा। वरना अधिकांश तो हम जैसे भी होंगे जो हर दिन बस प्रण ही करते हैं और लिखने
के रण में तब तक उतरते ही नहीं, जब
तक कि कोई रथ से धक्का न दे दे। विमला जी आपकी जीवटता, लगन और लेखनी को प्रणाम। (फोटो में बाएं से डॉ वैरागी, जगदीश जी, विमला
जी और अपन।)फोटो विमला जी के दामाद ने लिया था, धन्यवाद उनका।-
राजेश उत्साही, सं. टीचर ऑफ इंडियन पोर्टल, अजीम प्रेमजी यूनीवर्सिटी, होसूर रोड, बैंगलोर-560100 मो. 09731788446
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