शोध पत्र

अध्याय :- दस
शोध पत्र

राजस्थानी व हिन्दी के शोधपत्र
राजस्थानी में महिला गद्य लेखन : संदर्भ मेवाड़ में डॉक्टर विमला भंडारी ने अपनी शोधपरक दृष्टि से मेवाड़ अंचल की लोक कथाओं साहित्य सृजन की परम्पराओं का सटीक चित्रण प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है। रजवाड़ों के काल से ही राजपूताना की महिला साहित्यकारों द्वारा गद्य-पद्य की विधाओं में साहित्य सर्जन पर सूक्ष्म विवेचना प्रस्तुत की गई है। लोकोक्तियों,लोककथाओं और लोकगीतों में समाहित लोक साहित्य यहाँ की अनमोल संपदा है,यह तथ्य मुझे उनके शोध-पत्र पढ़ने पर ज्ञात हुआ।
रानी लक्ष्मी कुमारी चूड़ावत लिखती है, “कथा कहना और लिखना उनका पुराना शौक है – “वात कैवा रो अर लिखवारो म्हारो जुनो सौक है।..... या वातों ने कोरी जबानी ही नीं कैवे। हजारा री गिणती में ये लिख्योड़ी है।राजवाड़ों में महिलाएं पढ़ना लिखना जानती थीं। हस्त लिखित राजस्थानी गद्य में इन्होनें पाण्डुलिपियों में अनेक मनमोहक चित्रण प्रस्तुत किए हैं, जो देखते ही बनते हैं।
24 जून 1916 में देवगड़ (मिवाड़) के राजघराने में जन्मी रानी लक्ष्मी कुमारी चूड़ावत ने राजस्थानी कथा साहित्य, भाषा और संस्कृति को न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचने वरन उनकी पृष्ठपोषकता का सराहनीय काम किया है। राजस्थानी गद्य साहित्य का चमकता-दमकता नक्षत्र चूँडावत का स्थान आज तक किसी ने प्राप्त नहीं किया है, यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मांझल रात, अमोलक वाताँ, मूमल, गिर ऊंचा ऊंचा गढ़ा, फ़ैरे चकवा वात, राजस्थानी लोक गाथा (कहानी संग्रह), रवि ठाकर री वाताँ, रूसी कहाणीयां, संसार री नामी कहाणीयां (राजस्थान अनुसृजन) तथा राजस्थानी लोकवार्ता की पोथियों का संपादन तथा संकलन कर उन्हें संरक्षित रखा है। उनकी साहित्य, संस्कृति और लोकसेवा के लिए महामहिम राष्ट्रपति जी ने उन्हें पद्मश्री की उपाधि से नवाजा है। कथ्य में राजस्थानी वीरता और संस्कृति के चित्रण, प्रेम शृंगार के विविध रूप को उद्घाटित किया गया है। 'वीरांगना' अध्याय के माध्यम  से रानी जी कहती हैं – “कायर पति की प्रिय पत्नी कहलाने से वीर पति की विधवा कहलाना गर्व की बात है।”  
मेवाड़ की आधुनिक महिला साहित्यकारों के गद्य लेखन में नई पीढ़ी के सामने आने, उनके द्वारा साहित्य-सृजन की परिपाटी को पुष्ट करने तथा पी॰एच॰डी और डी॰लिट॰ जैसे उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर डॉ॰ विमला भंडारी ने संतोष जताया है। विगत लगभग 15-20 वर्षों से राजस्थानी भाषा में गद्य लेखन से जुड़ी डॉ विमला भंडारी मेवाड़ की आधुनिक महिला साहित्यकारों में सिरमौर है। विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित उनके लेख, उपन्यास, नाटक कहानी-संग्रह राजस्थानी साहित्य की अनमोल धरोहर है। कहानी, नाटक व्यंग्य, उपन्यास लेखन में हेमलता दाधीच (उदयपुर),डॉ॰ शांता मानावत, अनुश्री राठौड़, सरिता जैन, रीना मनारिया, करुणा दशोरा, पुष्पा चौहान, अनुकृति, कमला जैन, कमला अग्रवाल, नीता कोठारी, रेणु देपुरा, शकुंतला सोनी, चंदा शर्मा तथा दमयंती जाड़ावत आदि प्रमुख है।
ओंकाणा रा चितराम शोधपत्र में राजस्थानी शैली में प्रचलित लोकोक्तियों का गद्य-पद्यमय प्रयोग को साहित्य में स्थान को रूपायित कर बड़ा ही सजीव चित्र लेखिका ने प्रस्तुत किया है। राजस्थानी शैली में अभिव्यक्त ये लोकोक्तियाँ चित्रण को जीवंतता प्रदान करती है। बोलचाल की शैली भी प्रस्तुत ऐसा शोधपत्र अन्यत्र दुर्लभ है।
राजस्थानी साहित्य में राष्ट्रिय चेतना रा स्वर दक्खिनी राजस्थान रा जनकवि पेंटर राव शोधपत्र की डॉ॰ विमला भंडारी ने साहित्य को समाज का आइना बताते हुए साहित्य की शक्ति से अवगत कराया है। साहित्य सुप्त समाज को जागृत कर सिंह की तरह शक्ति सम्पन्न करता है तो ठहरे से समाज में तूफान सी हलचल पैदा कर देता है। जिस समाज का साहित्य जैसा होगा, वहाँ का समाज भी उसी तरह का होगा, यह बात राजस्थानी साहित्य एवं समाज के संबंध में सोलह आना सत्य है। राजस्थानी काव्य के सिरमौर सूर्यमल्ल की वीर सतसई तो मुरदों में भी जान फूंकने में समर्थ है तो कन्हैया लाल सेठीया के दोहे और गीत किसी से छिपे नहीं है। यहाँ की वीर, स्त्री, पुरुष और बालकों की वीरता में राजस्थानी साहित्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
स्वतन्त्रता पूर्व रचे गए गीतों सुषुप्त जनता के दिल और दिमाग को इस कदर झकझोरा कि सारा समाज ही स्वतन्त्रता आंदोलन में कूद पड़ा और उसे परिणति तक पहुंचाया। संलूबर प्रजामंड़ल के प्रचार प्रसार मंत्री पेंटर राव ने अपनी डायरी में लिखा है कि राव समुदाय ने सदैव देश प्रेम के गीतों से जन चेतना को जगाए रखा था। पेंटर राव में काव्य रचना का गुण जन्मजात था, पूर्वजों से मिली कला थी। वक्त की नजाकत को देखते हुए तुरंत गीत, कविता, छंद, चौपाइयाँ की रचना कर डालते। चाहे समाज के कुरीतियों के विरुद्ध जन-जागरण हो अथवा स्वतन्त्रता आंदोलन हर जगह उनके गीतों की तूती बोलती थी। जैसे जैसे जन-मानस पर उनके गीतों का परवान चढ़ता गया अंग्रेज़ हुकूमत की आँखों की किरकिरी बन गए, जेल गए, जुल्म सहे पर लक्ष्य से कभी पीछे नहीं हटे। ऐसे जनकवि देश में बिरले  ही हुए हैं।
राजस्थानी साहित्य संस्कृति मांय पर्यावरण चेतना”  में लेखिका ने उस ऐतिहासिक घटना का जिक्र किया है, जिसे पढ़कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। संवत 1787 की घटना है पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जब जांभोजी के उनतीस नियमों का पालन करने वालो मारवाड़ की धरती पर खेजड़ी को बचाने के लिए बिश्नोई परिवार के 363 सदस्यों ने बलिदान किया था। वृक्षों को बचाने के लिए 363 आदमियों जिनमें स्त्री, पुरुष, बालक, बालिका, वृद्ध एवं वृद्धाओं द्वारा अपना बलिदान करने जैसी घटना शायद ही विश्व साहित्य में कभी देखने को मिले। वृक्ष राजस्थान की जान है, शान है। वृक्ष यहाँ लोक आस्थाओं जुड़ा है, उनकी पूजा की जाती है। विभिन्न उत्सवों, तीज-त्यौहारों पर वृक्षों पर आस्था के गीत गाए जाते हैं।  पुत्रवत उनकी देखभाल की जाती है और तुलसी के विवाह की रस्म भी अदा की जाती है। राजस्थानियों ने वृक्षों से रिश्ते नातें तक स्थापित किए हैं, जो अशोक राठी, विमला भंडारी, विनोद बिहारी याज्ञिक, मीरा सिंह की रचनाओं तथा घूमर, मरुधर, मंगलगीत सरिता, राजस्थानी कहावतें आदि पत्र-पत्रिकाओं में भी देखी जा सकती है।
'सामाजिक कुरीतियां मेटवा मांय राजठानी भाषा रे रचनाकारा री  हुंकार’' शोधपत्र में लेखिका ने   
राजस्थानी समाज की कुप्रथाएँ, कुरीतियां, विकृतियाँ जैसे दहेज-प्रथा, पर्दा-प्रथा, डायन-प्रथा, बाल-विवाह, दासी-प्रथा, बहू-विवाह, अनमेल-विवाह, सगुण, अपशकुन के विचार, ऊंच-नीच के भेदभाव, टोना-टोटका जैसे अंधविश्वास आदि ने नारी सम्मान पर कुठाराघात किया तो पग-पग पर लज्जित, उपेक्षित,अपमानित, तिरस्कृत, धिक्कारित और हेय भाव से ग्रसित नारी त्राहि-त्राहि कर उठी और वदातामाता से गुहार करने लगी, "हे वदातामात! भाटो घड़जै पण लुगाई जमारों मत दीजै।"
समय ने अंगड़ाई ली। पत्र-पत्रिकाओं, संतों एवं साहित्यकारों ने इन विकृतियों पर खूब कलम चलाई, डॉ॰ श्रीकृष्ण, जुगनू, बावजी, चतुरसिंह जी, जवान सिंह सीसोदिया, विश्वनाथ शर्मा, विमलेश, प्रहल्लाद सिंह राठौड़, श्याम महर्षि, बसंती पवार, कपिल देवराज आर्य, ज़ेबा रशीद, डॉ॰ तारा लक्ष्मण गहलोत, रीता मेनोरिया, डॉ॰ विमला भंडारी, गौरी शंकर व्यास, हेमलता दाधीच, बस्ती लाल सोलंकी, मोहनलाल चौहान, भवानी शंकर गौड़, भाव, वेदव्यास, गीताश्री, तारा दीक्षित, पुष्पलता कश्यप, माधरी, ‘मधुडॉ कुसुम मेघवाल, डॉ॰ प्रकाश अमरावत, डॉ॰ चांदकौर जोशी, ऊषाकिरण जैन, गीता सामौर, डॉ ॰ सुमन बिस्सा, मनोहर सिंह राठौड़, दुलाराम सहारण, कैलाशदत्त उज्ज्वल, रवि पुरहित ने स्त्रियों पर हो रही अन्याय, अनाचार, अत्याचार को अपनी-अपनी रचनाओं में बखूबी स्थान दिया। परिणामस्वरूप कुछ कुरीतियां समाप्त हो चुकीं, कुछ समाप्ति की कगार पर हैं और आशा की एक नई किरण प्रस्फुटित होने लगी।
 
"राजस्थान की लेखिकाओं का बाल साहित्य: परिचय एवं विमर्शशोधपत्र में लेखिका एवं पत्रकार डॉ॰ विमला भंडारी ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को पिरोकर एक माला के रूप में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है। डॉ॰ भंडारी का यह प्रयास स्तुत्य है। लेखिका के इस प्रयास द्वारा राजस्थानी बाल-साहित्य की लेखिकाओं से परिचय तो हुआ ही, उनकी सूझ-बुझ बाल-मनोविज्ञान पर गंभीर पकड़ से भी पाठकों को लाभान्वित होने का अवसर मिला। इससे प्रेरणा ग्रहण कर लेखक-लेखिकाएँ एवं पाठक भावी बाल आवश्यकताओं का विश्लेषण कर उन पर लेखनी चलाने का एक सुअवसर प्राप्त करेंगे तथा देश स्वस्थ बाल-साहित्य प्रदान कर भावी पीढ़ी को सँवारने, संस्कारित करने, देश, समाज और परिवार के प्रति उन्हें अधिक सजग और समर्थ बनाने में अपनी महती भूमिका अदा करेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।
चरित्र विकास करती इस दशक की चुनिन्दा बाल पुस्तकेंसंदर्भ : राजस्थान नामक शोध पत्र में डॉ॰ विमला भंडारी ने राजस्थानी लेखकों और कवियों द्वारा भावी भारत की चरित्र विकास की मीमांसा की है । चुनिन्दा बाल साहित्यकारों द्वारा भावी पीढ़ी को निर्भीक, कर्तव्य-पारायण,चरित्रवान, मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण एवं परिवार समाज तथा देश के अच्छे सदस्य एवं नागरिक के रूप में निर्मित करने वाली साहित्यिक रचनाओं के कुछ अंशों को उद्धृत कर पाठकों तक पहुंचाने का पुनीत कार्य किया है। लेखिका का यह प्रयास एक सार्थक पहल एवं प्रशंसनीय कार्य है। साथ ही लेखिका की चिंता – “कहीं बाल साहित्य की ये पुस्तकें केवल पुस्तकालयों की शोभा बनकर ही न रह जाएँ और सारा साहित्य ही अपने लक्ष्य से भटक जाएसचमुच चिंतनीय विषय है। लेखिका की यह चिंता सुधि पाठकों के लिए भी विचारणीय विषय हैं। यदि हम ऐसी कोई उक्ति निकाल सकें जिसमें यह साहित्य, जिनके लिए रचा गया है, उन तक अपनी पहुँच बना सके तो निश्चय ही यह एक कर्तव्य-परायणता की स्वस्थ मिसाल होगी।
"आधी आबादी की किताबी रोशनी" शोध पत्र में लेखिका एवं पत्रकार डॉ॰ विमला भंडारी ने हिन्दी बाल पुस्तकों की चुनिन्दा एवं मूर्धन्य लेखिकाओं तथा उनके द्वारा रचित गद्य-पद्य विधाओं में रचित पाठ्य पुस्तकों को पाठकों से परिचय कराया है। वृहद बाल साहित्यकार कोश से संग्रहित किए गए हैं, जो लेखिका की रुचि, जिज्ञासा एवं खोजिवृति के परिचायक है। अपने इस अद्भुत सत्प्रयास के कारण लेखिका साधुवाद की पात्र हैं।
 सांवरे की मीरां और मीरां के सावरियाशोधपत्र में लेखिका ने मीरा के संसार के विविध रूपों का बड़ा ही सटीक एवं मार्मिक चित्र बड़े ही सहज ढंग से सफलता पूर्वक प्रस्तुत किया है। सत्य ही कहा गया है मीरा की भक्ति, भक्ति की शक्ति का समर्पण और समर्पण में भी पूर्ण विस्मरण तर्कातीत है। मीरा रस की ऐसी पावन गंगा जहां गोते लागाकर आराधक एवं आराध्य एकाकार हो जाते हैं। इस संदर्भ की कबीर के निम्नांकित दोहे को उद्धृत करना असंगत नहीं होगा

मेरा मन सुमिरै राम को, मेरे मन राम हि आहि ।
अब मन राम ह्वे गया, सिस नवावों काही।।
भाव है मीरा प्रियतम की शक्ति के रंग में रंग कर इस तरह सांवरी हो गई कि उसके विस्मरण में स्वयं प्रियतम के स्वरूप में एकाकार हो गई। उसे हर हाल में, हर रूप में, हर स्थान पर पाकर वह अपनी अखियों में सँजोए रखती है। नि:संदेह डॉ॰ विमला भंडारी का यह शोध पत्र शोध कर्ताओं को एक नई दृष्टि प्रदान करेगा। लेखिका का प्रयास स्तुत्य है, सार्थक है। 







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