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अध्याय :- आठ
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आजादी की डायरी
  जैसे ही मैंने डॉ. विमला भंडारी द्वारा संपादित पुस्तक आजादी की डायरीपढ़ी, वैसे ही मुझे अपने बचपन के वे दिन याद आने लगे, जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता था और मेरे पिताजी के आर्य समाजी मित्र स्व. कन्हैयालाल जी आर्य ने मुझे किसी योग-विशारद द्वारा लिखित पुस्तक विद्यार्थी जीवनदी थी, जिसे पढ़कर मैंने दो चीजें सीखी थी। पहला, डायरी लिखना और दूसरा, समय-सारणी बनाकर सभी विषयों का समान रूप से अध्ययन करना। डायरी लिखना तो ज्यादा नहीं चल सका, दसवीं से लगाकर इंजीनियरिंग काॅलेज के प्रथम वर्ष तक। तीन साल प्रतिदिन मैंने डायरी लिखी अपने प्रतिदिन के कामों का ब्यौरा करते हुए। कितने घंटे पढ़ाई किया, कौन-कौन से विषय पढ़े, कौन-कौन मिलने आया, कौन-सी फिल्म देखी, पुस्तकालय से कौनसी किताबें लाई इत्यादि-इत्यादि। मगर डायरी-लेखन मेरी उन दिनों की आदत-सी बन गई थी। समय-सारिणी के अनुरूप पढ़ाई करना छात्र जीवन पर्यन्त चलता रहा। आजादी की डायरीमें विमलाजी ने स्वतंत्रता सेनानी मुकुन्दलाल पण्डया द्वारा लिखी गई खास तीन डायरियों को तिथि वार प्रस्तुत किया है, यद्यपि वर्ष 1933 से लेकर 1951 तक अर्थात 19 वर्षों की महत्त्वपूर्ण घटनाओं के इतिहास एवं साहित्य का वर्णन करती कुल तैंतीस डायरियां है, जिनमें पांच-छः डायरियां अनुपलब्ध है।
प्रोफेसर एवं इतिहासविद् डॉ.जे.के. ओझा के अनुसार डायरी-लेखन इतिहास एवं साहित्य में नवीन एवं प्रमाणिक तथ्यों को जोड़ने का एक सर्वोत्तम स्त्रोत है। जिसे शोधार्थी मौलिक व प्राथमिक सामग्री के रूप में उपयोग कर सकते हैं। विमलाजी के इस ग्रंथ में सलूंबर के पास गींगला गाँव के निवासी मुकुन्दलाल पण्डया की डायरी न. 23, 24, 25 से उनकी निजी घटनाओं को छोड़कर हमें गींगला, मेवाड़ राजस्थान एवं भारतीय परिवेश के स्तर की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक घटनाओं का ज्ञान होता है। विशेषतया स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित कई नवीन तथ्य उजागर होते हैं। और उन तथ्यों का सरलीकरण करने के लिए मूल पाठ के साथ संपादकीय टिप्पणी कर विमलाजी ने स्तुत्य प्रयास किया है। संपादकीय में विमलाजी लिखती है, ‘‘जामरी नदी के किनारे बसे गांव गींगला का निवासी मुकुन्दलाल देवराम पंडया एक ऐसा पढ़ा-लिखा नवयुवक है जो कि महाराष्ट्र के नागपुर में किसी दवा कम्पनी में एजेंट का काम करता था। इस वजह से उसे भारत के कोने-कोने का भ्रमण करना पड़ता था। फलस्वरूप उसे तत्कालीन भारत की नब्ज़ को पहचानने में ज्यादा समय नहीं लगा। इस दौरान उसने सारी जानकारियों को डायरी लेखन के माध्यम से कलमबद्ध किया। किस तरह वह आजादी के लिए वह अपनी नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता-संग्राम में कूद पड़ा? किस प्रकार आस-पास के आदिवासी इलाकों को जाग्रत किया? कितने ओजस्वी भाषण दिए? कितनी कमेटियों का मैंबर बना? और अंत में, सलूंबर प्रजामंडल का उपाध्यक्ष बना"
यह डायरी पढ़ते समय पाठकों के समक्ष देश की तत्कालीन राजनैतिक घटनाओं के चित्र उभरने लगते है, आंदोलनकारी गतिविधियां, रियासतों का विलयीकरण, राजपूताना से राजस्थान का उदय, उदयपुर का प्रथम म्युनिस्पल चुनाव, मोहनलाल सुखाडिया का पारंपरिक पगड़ी के बजाय खद्दर की सफेद टोपी पहन मेवाड़ की मिनिस्ट्री में शपथ लेना इत्यादि के अतिरिक्त सामाजिक परिस्थितियों में सलूंबर क्षेत्र का मृत्युभोज, छुआछूत, जातिवाद, अंधविश्वास, रिश्वतखोरी, कालाबाज़ारी, अपराधवृत्ति, स्त्री-विक्रय, अशिक्षा, आटे-साटे की प्रथा, यौन-उत्पीड़न, बाल-विवाह, अश्लील गीतों का प्रचलन तथा प्रजामंडल की राजनैतिक गतिविधियों के। इस डायरी में मेवाड़ में आदिवासियों की स्थिति, पारिवारिक एवं कौटुम्बिक विद्रूपताएं मुकुंदलाल पण्डया का जीवन-परिचय, उनके यात्रा-वृतांत, उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व, मनोवृत्ति और देश-प्रेम के उदाहरण मिलते हैं। साथ ही साथ, स्थानीय नेताओं जैसे माणिक्यलाल वर्मा, भूरेलाल बया, रोशनलाल शर्मा, बलवन्त सिंह मेहता जैसे राजस्थान के प्रथम पंक्ति के कई नेताओं के अलावा भारत के सभी बड़े नेताओं के अधिवेशन व आंदोलनों के ब्यौरे मिलते हैं। इस डायरी में प्रथम स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 की आंखों देखा घटनाक्रम का वर्णन है, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का दिन 30 जनवरी 1948 भी अंकित है। हिंदू-मुस्लिमों के बीच दंगे फसाद, नेताओं और अंग्रेजों का रवैया, भारत का विभाजन आदि पर स्व. मुकुन्दलाल पंडया की कलम चली है।
विमलाजी ने संपादन के समय उनके द्वारा लिखे गए देशज शब्दों तथा बोलचाल की भाषा के शब्दों को ज्यों का त्यों रहने दिया है, ताकि उन आलेखों की न केवल विश्वसनीयता बनी रहे वरन हिंदी भाषा के प्रारंभिक स्वरूप की जानकारी शोधार्थियों को हो सके। जैसे अेक(एक), अेकाद(एकाध), बिल्कूल, बहूत, इलाखा(इलाका), आझाद(आजाद), साईझ(साइज), पोझीशन(पोजिशन), फिरहाल(फिलहाल), रेश्नकार्ड(राशनकार्ड), ज्यादाह(ज्यादा), संगटन(संगठन), सक्ते या सक्ता(सकते या सकता), हात(हाथ), गभडा(घबरा), इत्यादि मूल दस्तावेज से लिए गए है। यह डायरी पढ़ने से तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक कलेवर, चाहे वह देश का हो, या राजस्थान का हो, या सलंबर का क्यों न हो, के सारे जीवंत दृश्यों का आंखों देखा वर्णन नजरों के सामने से गुजरने लगता है। इस प्रकार आजादी की डायरीका उतना ही ऐतिहासिक महत्त्व है, जितना महात्मा गांधी के आयोजनों व समयबद्ध करती महादेव देसाई की गुजराती में लिखी तीन डायरियां जमनालाल बजाज, राजन्द्र प्रसाद, घनश्याम बिरला की डायरी के कुछ पन्ने तथा मनी बहन की डायरी अकेला चलो रेका।
डायरी नं. 23 में मुकुंदभाई की आखिरी यात्राओं, नौकरी से इस्तीफा, घर वापसी, प्रजामंडल के उपाध्यक्ष बनने के अतिरिक्त तहलका और सरकारी जांच, नवली की हत्या, उदयपुर के प्रथम म्युनिस्पल चुनाव, नवरात्रि इत्यादि का विवरण है, जबकि डायरी नं. 24 25 में माणिक्यलाल वर्मा के साथ सत्याग्रह, प्रजामंडल का दमन, वली, कुराबड़ व रिखबदेव(ऋषभदेव), की सभाएं, बेगार विरोधी मोर्चा, मोहनलाल सुखाडिया का शपथ समारोह, भारत के कौमी दंगे व बंटवारा, प्रथम स्वतंत्रता दिवस व गांधीजी के निधन पर उन्होंने लिखा। सारी डायरियों का गहन अध्ययन करने के बाद उन्हें पठनीय बनाने के लिए डायरी की पृष्ठभूमि तथा अंत में अपनी संपादकीय टिप्पणी प्रस्तुत की है, ताकि किसी भी पाठक को वहां के स्थानीय व देशज शब्दों को समझने में किसी तरह की परेशानी न हो। कुछ शब्द उदाहरण के तौर पर नीचे दिए गए है-
हाली - भूमि वाले खेती के लिए उपज का निश्चित हिस्सा, भोजन, कपड़ा, तंबाकू आदि देकर मीणा जाति के लोगों को रखते थे, उन्हें हाली कहते है।
कंसार - गेहूं के आटे, घी व शक्कर का बना मेवाड़ का प्रचलित मिष्ठान्न।
कडुवा - शव दाह-संस्कार के बाद बनाया भोजन जिसे कुटुम्ब खाता है।
करियावर - मृत्यु के बारह दिन बाद बड़े भोज का आयोजन।
सीर/पांति - हिस्सा
दापा प्रथा - लड़की पक्ष वाले पैसा लेकर लड़की ब्याहते थे।
आटे-साटे की प्रथा - वधू के बदले पैसे नहीं लेकर उसके ससुराल की लड़की अपने घर में ब्याही जाती थी।
पियावा - कृषि-सिंचाई में उपयोग लेने वाले पानी के लिए वसूला जाने वाला कर।
बापीवार - मालिकाना हक
उजर - मांग या एवज में कोई वसूली
डेढ़-पावड़ा - पुराना नाप(100-150 ग्राम वजन)
दो आना - प्राचीन मुद्रा(12 पैसे)
अेकादशाह - मृत्यु का ग्यारवां दिन
शुक्ल - मृत्यु के निमित्त कर्मकांड करने वाला ब्राह्मण
अमलपापड़ी - अफीमपान
डौढ़ा - डेढ़ गुना
हाका करना - मीणा जाति के पुरूष महाराणा के शिकार को हल्ला करते हुए घेरते समय आवाज करते थे।
बेठ-बेगार - मुफ्त में किया जाने वाला कार्य
भेडिया-छसान - छद्मवेशी
ढूंढ - संतान जन्म के बाद आयी पहली होली पर मनाये जाने वाली एक रस्म
वडील - बुजुर्ग
भांजगडिया - नेतृत्व प्रदान करना
बापी पट्टा - मालिकाना हक
कूंता - लगान वसूल करने के लिए पैमाईश करने का तरीका
आकड़ी - विपरीत स्थिति को ठीक करने के लिए कोई चीज छोड़ना
सीणा - पुलिस कांस्टेबल
खालसा - सरकारी अधिग्रहण, जो अक्सर कृषि भूमि या जागीर के लिए प्रयुक्त होता है।
इस प्रकार विमला जी ने इन डायरियों में प्रयुक्त देशज व बोलचाल की भाषा के शब्दार्थ लिखकर न केवल इस पुस्तक को सहज बनाया है वरन हाली, केसार, करयिावर, हाका, आकड़ी, खालसा, भेडिया छसान, ढूंढ, कूंता, भांजगडिया जैसे अनेकानेक शब्दों को हिन्दी की प्रमुख धारा से जोड़कर अत्यंत ही सराहनीय कार्य किया है, जिसने न केवल हिंदी के शब्दकोश का विस्तार होगा वरन भाषा उतनी ही व्यापक व सुसमृद्ध बनेगी। जिस प्रकार विदेशी साहित्यकारों ने फ्राज काफ्का, दोस्तोवस्की, वर्जीनिया कुल्फ, डोरोकी वडर्सवर्थ की डायरियों ने उनकी भाषाओं को सुसमृद्ध किया, वैसे ही मुकुन्दलाल पंडया की डायरी भी साहित्यिक स्तर पर हिंदी भाषा के प्रारंभिक स्वरूप, आंचलिक शब्दों के प्रयोग तथा हिंदी भाषा के लिए जा रहे मानकीकरण के प्रयासों में भी प्राथमिक साम्रगी के रूप में उपयोगी साबित होगी।
इस डायरी के कुछ दृष्टांत सार्वभौमिक सत्य को उजागर करते हुए पाठकों को सच्चा जीवन जीने की प्रेरणा देते है, उदाहरण के तौर पर एक बानगी देखिए-
24.2.46 
जीवन क्षण भंगुर है। क्या ठिकाना तू कब तक रहेगा। कुछ हो सके तो परोपकार कर ले। स्वार्थ त्याग बिना परोपकार संभव नहीं। संसार में त्याग ही सबसे कीमती व असली वस्तु है। स्वार्थ कभी पूरा नहीं होगा। ईश्वर ने अगर कुछ त्याग करने की प्रेरणा दी है तो उसे मन में दबा के मत रख। संसार के महापुरुष त्यागी ही थे। कृष्ण, भीष्म, गौतम, शंकर, दयानंद, विवेकानंद, तिलक, गांधी, जवाहर और सुभाष ने त्याग के अनुपम दृष्टांत रखे है बारंबार मनुष्य जीवन मिलने का क्या विश्वास है। कुछ ऐसा काम कर जिससे तेरी मौत पर कोई हंसे नहीं। तेरे जन्म पर पुत्री की इच्छा रखने वाले तेरे माता-पिता ने तुझे गालियां सुनाई थी और क्रोध के मारे जन्मदिन की याददाश्त भी नहीं लिखी तो तू कुछ ऐसा काम करता जा जिससे तेरी मृत्यु के बाद कुछ न कुछ लिखा जा सके। सगे संबंधी, भाई बंधु न सही किंतु आम जनता तेरा जनाजा निकाले और तेरे नाम दो आंसू डाल सके।’’
‘‘धन कमाना और उसका संग्रह करना और उसे रखने की चिंता करना यह मनुष्य जन्म का कोई कर्तव्य नहीं है। अगर ऐसा होता तो संसार दूसरे रूप में रहता।’’ 
‘‘मैं इस महानगरी पर दृष्टि फेंकता हूं तो मेरा प्यारा छोटा-सा गांव आता है। गींगला के हिसाब से कलकत्ता कितना बड़ा शहर है। 32 लाख की आबादी है। मैं खिड़की खोलकर दूर-दूर देखना चाहता हूं अपनी पतिव्रता पत्नी और बच्ची को याद करके उनके ही विचारों में लीन हो जाता हूं। मेरी छोटी-सी जीवन नैया के ये दो साथीदार किस विश्वास और अथाह प्रेम में मग्न मेरा ही विचार करते-2 निद्रा के स्वाधीन हुए होंगे। इसका ख्याल करके मन में उत्कट लालसा व प्रेम उत्पन्न हो रहा है।’’
खुद मुकुन्दलाल डायरी लेखन की महत्ता को उजागर करते हुए लिखते है, दिनांक 7.10.46 के संस्मरण में-
‘‘डायरी लेखन ने मुझे बहुत सी हरकतों,पापों, और लालचों से बचा लियां डायरी मेरी सब हरकतों को देखती रहती है और वास्तव में पूंछा जाये तो मुझे कोई भी बुरा काम करते हुए डायरी का डर लगता हैं और अच्छा काम करने में उससे प्रोत्साहन मिलता रहता है यही मेरा डायरी लेखन का मर्म है’’ इस प्रकार डायरी लेखक ने अपने स्व-नियंत्रित, स्व-पोषित और स्व-अनुशासित जीवन की प्रेरणा देने के साथ साथ कठिन परिस्थितियों में भी अच्छे-बुरे कर्मों को इंगित करने वाली स्व-निदेशक बन निरंतर जनसेवा करते हुए जीवन को ऊंचा उठाने में सहायक सिद्ध होती है। आगे वह लिखते है (25.3.48 का संस्मरण)
‘‘किसी न किसी तरह संक्षेप में भी डायरी लिखते जाना मेरे लिये आजीवन जब तक आंखों से सूझता है  - लिखने की हात में शक्ति है और स्मरणशक्ति मौजूद हे - लिखते जाना आवश्यक है. डायरी लिखना मेरे लिये अब भार स्वरूप नहीं रही. उल्टे वह मेरी नित्य की आदत में शामिल हो गया है. जिस दिन डायरी मुसाफिरी के साथ नहीं रहती मन अनमना-सा रहता है।’’
प्रथम स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुकुन्दलाल पंडया की कहती है-
‘‘स्वतंत्रता दिवस का सूर्योदय होने से पहले हमारी टोली बड़े ही उत्साह व उमंग  के साथ प्रजा-मण्डल ऑफिस से प्रभात फेरी के लिए राष्ट्रीय गीतों के साथ रवाना हुई। बोहरा बाजार, नागदा टोली होते हुए रावली पोल के पास पहुंचते-2 वहां हमारे स्वागत में सिसोदिया झण्डे के साथ-2 प्रजा-मण्डल का झण्डा सरकारी दफ्तर पर पोल के ऊपर यहां के बड़े अफसर के द्वारा लगा दिया गया था। सरकारी प्रमुख कचहरी एवं महल के प्रमुख दरवाजे पर अपना झण्डा लहराता देख आनंद की लहर-सी फैल गई। प्रभात फेरी प्रजा-मण्डल ऑफिस में ही आकर सारे मुहल्लों में घूमती हुई आकर विसर्जन हुई। देखते ही देखते सारे बाजार में, दुकानों घरों पर झण्डे फहराने लग गये। उदयपुर से मंगाये गये झण्डे बिलकुल नाकाफी रहे। बाहर गांवों में बहुतों को निराश लौटना पड़ा।...... ’’
गांधीजी के निधन पर उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, दिनांक 31.1.48 के कुछ अंश-
‘‘समाचार इतने भयंकर व उत्तेजित करने वाले थे कि मैं तो सन्न रह गया। साथ वाले भी विचार शून्य हो गये।इस तरह का समाचार सुनने की शायद संसार भर में आज तक किसी मनुष्य ने कल्पना भी नहीं की होगी। 10 रोज पहले गांधीजी का उपवास समाप्त होने के दूजे रोज गांधी जब सायंकालीन प्रार्थना में गये तो वहां पंजाब से भागकर आये किसी शरणार्थी मदन लाल ने उन पर बम फेंका किन्तु संयोग से गांधीजी बाल 2 बच गये थे. दूसरे आदमियों को मामूली चोटें आई थी किंतु कोई  खास नुकसान नहीं हुआ। अब आज रास्ते में रोककर उस अनजान मनुष्य ने जो समाचार सुनाये वे वास्तव में मनुष्य जाति मात्र के लिये कलंकपूर्ण थे.अक मनुष्य इतनी नीचता व बर्बरता कर सकता है इसका कोई अनुमान भी नहीं कर सकता। मानवी नीचता की अब हद हो गई है।
वंदनीय महात्मा गांधीजी कल ता. 30-1-48 की शाम को 5 बजे देहली में बिडला हाउस के सामने वाले मैदान में रोज की तरह सम्मिलित हजारों स्त्री पुरुषों के साथ बैठकर प्रार्थना करने गये वहां नाथूराम नामक किसी कलंकी नीच - महाराष्ट्रीय कहे जाने वाले - हिन्दू नामक दैनिक पत्र के संपादक - हिन्दू सभा के वैतनिक नौकर व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ नामक अराष्ट्रीय संस्था के मंत्री ने पिस्तौल से 3 गोलियां चलाकर उस जगत पूज्य महात्मा के शरीर का अन्त कर दिया। यह सब विगत के समाचार मुझे रात के 9 बजे मालूम हुए जबकि हम सब लोग सालुंबर में नये आये जंगलात हाकिम अेक सिख के यहां बेटरी पर चलाने वाले रेडियो पर सुने. गांधीजी की मृत्यु के समाचार कल इसी रेडियो से मालूम हुए थे। आज सारा दिन सारा व्यापार रोजगार छोटे बडे सब बिलकुल बंद रहे. आम हरताल रही।.... ’’
अगले दिन की डायरी में-
‘‘...... जिस महापुरुष ने बाइबल कुरान व गीता को अेक समान समझा उस महापुरुष को नीच व स्वार्थांधों के उकसाने से अेक भ्रष्ट दिमाग हिंदू कुल कलंक ने - अकारण - बिना अपराध के प्रार्थना में गीता के साथ कुरान की आयते क्यों पढी जाती हैं। इस मूर्ख विचारधारा में सारे हिन्दू धर्मशास्त्र-उसकी महान परंपरा एवं भारत के उज्ज्वल भविष्य को भी कलंकित कर डाला।’’
मुकुन्दभाई अपने आचरण में कितने पारदर्शी थे इस बात का अनुमान उनके 6.10.46 की डायरी लेख से सहज लगा सकते है-
‘‘ इस में जो कुछ लिखा गया है जानबूझकर किसी विषय की खास आलोचना करने के निमित्त नहीं लिखा गया। केवल जो वस्तु सामने आयी, जिस रूप में मेरे सामने आयी। उसका मेरे मन पर जो असर हुआ वह संक्षेप में लिखा गया है। बहुत सी फालतू बातों को विस्तार से लिखा गया है और संभव है कि आवश्यक विषयों का उल्लेख करना रह गया हो, कई दिनों तक नहीं लिखा जा सका और कभी 2 तो 8-10 दिनों का संक्षेप अेक साथ ही लिखने का मौका आया होगा। लेकिन आमतौर से मेरे जीवन चरित्र का सिलसिला इसमें मौजूद है। किन्हीं ऊंचे विचार व सिद्धांतों की चर्चा करने या संसार की या भारत की राजनीति का इतिहास लिखने का इस छोटी सी डायरी में न स्थान है न वैसी मेरी कोई योग्यता ही केवल मेरे जीवन कम का छोटा-सा प्रतिबिंब इसमें आ जाय तो वही मेरे लिये संतोष का विषय होगा. इत्योम।’’
डायरी लेखक के ये शब्द पढ़कर मैं भावविभोर हूं क्योंकि इस पुस्तक में संदर्भित डायरियों में उनका लेखन निष्पक्ष रूप से अपने इर्द-गिर्द गींगला के छोटे से गांव से राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में हो रही हलचलों का पूरी तरह से पारदर्शिता पूर्वक उल्लेख किया है। डायरी लेखन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता  आधुनिक जमाने के लेखकों को डायरी लेखन की ओर प्रेरित करेगा। डायरी-लेखन के बारे में फ़्रांज काफ्का लिखते है:-
" डायरी रखने से एक लाभ है कि हम अपने परिवर्तनों की यतनाओं से सही ढंग से परिचित हो लेते हैं। हमें डायरी में वे तमाम साक्ष्य भी मिल जाते हैं,जो हमें अपने समय की याद दिलाते हैं, जब हमने जीवन किन्हीं लिखने योग्य स्थितियों में जिया था। अपने पूर्व जीवन का डायरी के जरिए हम जायजा लेते हैं और उससे हमारे संघर्षों में निहित हमारे अज्ञान की परतें भी खुलती हैं।"
 मुकुन्दभाई के जीवन के छोटे प्रतिबिम्ब की इच्छा को वृहद व व्यापक रूप से साकार कलेवर प्रदान कर सुविख्यात लेखिका डॉ॰ विमला भंडारी ने न केवल उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है, वरन देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को अक्षुण्ण रखने के साथ-साथ वर्तमान की नई पीढ़ी के हाथों में उस जमाने के त्याग, संघर्ष और राजनैतिक विकास के लिए उठाए गए कदमों से प्राप्त आजादी की विरासत को सौंपा है, ताकि वे उन कुरबानियों को याद कर देश की आजादी की रक्षा कर सकें।


आशा करता हूं कि डॉ. विमला भंडारी की इस कृति का हिन्दी जगत में भरपूर स्वागत होगा और साहित्य-प्रेमी, शोधार्थी, इतिहासज्ञ व आम पाठक भी इस कृति से लाभान्वित होंगे और वे स्वयं भी डायरी-लेखन की ओर प्रवृत्त होकर आने वाली पीढ़ी के लिए वर्तमान समाज के मूल्यों, उपलब्धियों और सांस्कृतिक धरोहरों से परिचित करा सकेंगे।
पुस्तक: आजादी की डायरी
प्रकाशक: राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
आईएसबीएन 978-81-86103-08-3
प्रथम संस्करण: 2012
डायरी लेखक: स्वतंत्रता सेनानी स्व. मुकुन्दलाल पंडया
संपादन: डॉ. विमला भंडारी
 
 








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