सलूम्बर का इतिहास

अध्याय :- नौ


सलूम्बर का इतिहास

  डॉ॰ विमला भंडारी द्वारा लिखा गया सलूम्बर का इतिहासएक प्रमाणिक व शोधपरक पुस्तक है, जिसमें सलूम्बर की भौगोलिक पृष्ठभूमि, राजनैतिक इतिहास भीलों के शासन से लेकर चौहान, राठौड़ से चूंडावत शासन के अभ्युदय मेवाड़ के राजवंश (1419 ई. से लेकर 1949 तक), सलूम्बर की 1857 की क्रांति में साथ देना, सलूंबर के स्वतंत्रता-आंदोलन और उसका योगदान, सलूंबर ठिकानों का प्रशासन, वहां का स्थापत्य एवं चित्रकला आदि विषयों पर गहन अध्ययन के बाद यह पुस्तक लिखी गई है।
इस ग्रंथ को तैयार करने के लिए लेखिका को अप्रकाशित सामग्री को भी आधार बनाना पड़ा है, जिसमें सलूंबर के कामदार नाथूलाल दरक का निजी संग्रह, सेवक तुलसीराम का संग्रह, नगरसेठ चंपालाल मंत्री का निजी संग्रह, राणीमंगा की पोथी, सोनी हरदेराम की पीढ़ावली, राजाओं की पत्रावलियां, पट्टे व ताम्रपत्र, शिलालेख व स्वतंत्रता सेनानियों के निजी संस्मरण है। जबकि प्रकाशित पुस्तकों व ग्रंथों की भी सहायता ली गई है। जिसमें हिंदी में गौरीशंकर हीराचंद ओझा की पुस्तकें- उदयपुर राज्य का इतिहास (भाग 1, 2) जगदीशचंद्र गहलोत की पुस्तकें राजपूताने का इतिहास, राजस्थान का सामाजिक जीवन के अतिरिक्त डाॅ. जे. के. ओझा, डाॅ. राजशेखर व्यास, रामवल्लभ सोमानी, डाॅ. प्रकाश व्यास, देवीलाल पालीवाल, नीलम कौशिक, कवि श्यामलदास, डाॅ. डी.एन. शुक्ल, डाॅ. देवकोठारी आदि इतिहासज्ञों की रचनाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी में लिखी गई कर्नल जेम्स टाॅड की एनाल्स एंड एंटीक्वीटीज आफ राजस्थान,स्टैला क्रेमरिश की द हिन्दू टेंपलसी. एल. शावर्स की ए मिसिंग चेप्टर आॅफ इंडियन म्युटिनी’, और राजस्थानी ग्रंथ समरांगण सूत्रधार (महाराज भोज), मुहणौत नैणसी री ख्यात प्रमुख है।
राजस्थान राज्य पुरा अभिलेखागार, बीकानेर, रघुवीर पुस्तकालय, सीतामऊ, प्राच्यविद्य प्रतिष्ठान उदयपुर, साहित्य संस्थान राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर अभिलेखागार, बनेड़ा फोर्ट अर्काइव्ज से भी बहुत कुछ सामग्री इस ग्रंथ की रचना के लिए लेखिका द्वारा संदर्भित है।
यह बात सही है कि राजस्थान के विभिन्न राज्यों और खासतौर पर मेवाड़ के इतिहास के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है, मगर मेवाड़ के ठिकानों पर पृथक रूप से न कोई खास शोध हुआ और न ही अध्ययन। यही कारण बना लेखिका द्वारा इस अछूते विषय पर अपनी कलम चलाकर लिपिबद्ध करने उसे विस्तृत फलक पर पहुंचाने का। यही ही नहीं, सलूंबर ठिकाने की शासन-व्यवस्था, न्याय-कानून, व्यापार, कृषि, देवप्रासाद, तालाब, स्मारक, भवन, जन-कल्याण के कार्य इत्यादि की मेवाड़ राज्य के विकास में अहम भूमिका रही है।, इसलिए इस प्रमुख ठिकाने की राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक इतिहास जाने बिना मेवाड़ का इतिहास अधूरा रह जायेगा।
सलूंबर का इतिहासलिखने में लेखिका को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा, जिस विषय पर कोई व्यवस्थित सामग्री का नितांत अभाव हो, समय के थपेड़ों ने मूल अभिलेखन सामग्री का क्षय किया हो, रंग-रोगन या चूने से पूते शिलालेख लोक-अवहेलना के शिकार हो गए हो। उस अवस्था में इस कार्य की दुरूहता और श्रम-साध्यता के बारे में आप आसानी से अनुमान लगा सकते हैं हैं इस ग्रंथ की रचना करने में लेखिका ने सन् 1857 से 1947 ई. राष्ट्र-व्यापी आंदोलनों में सलूंबर की गतिविधियों तथा परिस्थितियों का ब्यौरा लेने के लिए सेनानियों के संस्मरणों को तलाशना पड़ा होगा, ताकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को विस्तृत करने वाली गांव-गांव में गूंजी शंखनाद की भूली-बिसरी, अंधेरी खामोश यादों को उजागर करने की पहल को जन्म दिया जा सके। 
यह कृति अवश्य इतिहासकार, शोधकर्ता एवं विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी। मैं डॉ॰ विमला भंडारी के इस सारस्वत प्रयास के लिए हार्दिक धन्यवाद देता हूं और साथ ही शत-शत नमन भी।
पुस्तक: सलूंबर का इतिहास
प्रथम संस्करण: 1999
द्वितीय संस्करण: 2000
मूल्य: 600 रूपए
प्रकाशक: अनुपम प्रकाशन, सलूंबर-313027
 
 










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