बाल-साहित्य

अध्याय:प्रथम
बाल-साहित्य

बांग्ला में कहा जाता है कि जो साहित्यकार बाल-साहित्य नहीं लिखता उसे स्थापित साहित्यकार कहलाने का कोई हक नहीं।वास्तव में विश्व-कवि रवींद्र ठाकुर तक ने अपनी भाषा में बाल साहित्य का सृजन किया है। स्वाभाविक है कि बांग्ला में पहले से ही उत्कृष्ट बाल साहित्य लिखा जा रहा है,जबकि हिन्दी में आज भी उनके स्वनाम-धन्य महाकवि अथवा समालोचक बच्चों के लिए लिखना साहित्य-सृजन का अंग नहीं मानते। बाल-साहित्य के प्रति उपेक्षा का भाव आज तक बना हुआ है, अन्यथा साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित हिन्दी साहित्य का इतिहास-लेखक उसके प्रति पूर्वाग्रह क्यों अपनाता? उक्त इतिहास में न केवल बाल-साहित्य,बल्कि अहिंदी-भाषा भाषियों का हिन्दी साहित्य-सृजन,विश्व के हिन्दी लेखकों का लेखन आदि विषय भी नहीं लिए गए।  अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी, जापानी, इतालवी आदि भाषाओं में बाल-साहित्य की समृद्धि का पता इस तथ्य से चल जाता है कि इन भाषाओं का बाल साहित्य हिन्दी साहित्य अनेक भाषाओं में अनूदित हुआ है उदाहरणार्थ किपलिंग,चार्ल्स डिकिन्स,मोपासाँ,टॉलस्टाय आदि के बाल-साहित्य के अतिरिक्त हाल ही में बहुचर्चित बाल-कृति हैरी पॉटरहिन्दी में प्रकाशित हुई है। अंग्रेजी में इस पुस्तक का करोड़ों की संख्या में विक्रय हुआ,जिसे प्राप्त करने के लिए छात्रों की  लंबी-लंबी लाइनें लगती रही हैं। काश, हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में भी ऐसा बाल साहित्य प्रकाशित होता!  किन्तु हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है,क्योंकि हमारे संस्कृत साहित्य में लिखित पंचतंत्रने आज विश्व की अनेक भाषाओं में अनूदित होकर वहाँ के बाल-साहित्य की अभिवृद्धि की है। इस प्रकार पश्चिमी बाल साहित्य को महत्त्वपूर्ण अवदान के रूप में हमारा पंचतंत्रउपस्थित है। मगर इसी प्रकार भर्तृहरि नीति शतकमें भी बच्चों के मनोरंजन के साथ-साथ उनके लिए नैतिक शिक्षा का समावेश किया गया है,जिसे सही ढंग से प्रचारित-प्रसारित करने की आवश्यकता है। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी व्यवहार भानुपुस्तक बच्चों के लिए गुजराती हिन्दी में लिखी थी, जिसके भारतीय तथा विश्व भाषाओं में अनुवाद होने चाहिए, किन्तु जिस देश में भ्रष्ट राजनीति ने वातावरण को दूषित किया हुआ है, वहाँ इस प्रकार के सुझाव नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह जाते है । इस सब के बावजूद हिन्दी में भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर पंडित सोहन लाल द्विवेदी तक ने ढेर सारा बाल साहित्य माँ-भारती को दिया है। बाद के लेखकों में निरंकार देव सेवक, चंद्रपाल सिंह यादवमयंक’, राष्ट्रबंधु, जयप्रकाश भारती, उद्भ्रांत, डॉ॰ विमला भण्डारी आदि अनेक नाम है जिन्होंने बाल साहित्य के क्षेत्र में नए कीर्तिमान दिए।इस अध्याय में सर्वप्रथम हम डॉ॰ विमला भण्डारी द्वारा लिखे गए बाल-साहित्य पर एक-एक कर विहंगम दृष्टि डालेंगे।
1. प्रेरणादायक बाल कहानियां

डॉ. विमला भंडारी के इस कहानी संग्रह में कुल तेरह कहानियां हैं। जैसा कि इस पुस्तक का शीर्षक हैं- "प्रेरणादायक बाल कहानियां’’ वैसे ही इन सारी कहानियों में बच्चों को प्रेरणा देने वाले उम्दा कथानकों का समावेश हैं। एक-एक कहानी अलग-अलग प्रेरणाओं के स्रोत बनते प्रतीत होते हैं।  कहानी आदिकाल से मनुष्य के ज्ञानार्जन एवं मनोरंजन की साधन रही है। बच्चे आरंभिक अवस्था से ही दादी, नानी, माता-पिता, बुआ, मौसी आदि से कहानी सुनने और बाद में पुस्तकों, रेडियो, टी॰वी॰ तथा मनोरंजन के अन्य साधनों द्वारा कहानी पढ़ने,सुनने, देखने में रुचि लेते हैं। कहानीकार बाल-मनोविज्ञान के अनुसार यथार्थ के धरातल पर खड़ी कहानी को कल्पनाओं के बहुरंगी रंग भर कर सरल,सारस,बोधगम्य शब्दों के शिल्प से ऐसा रोचक रूप प्रदान करता है कि उसे पढ़ सुनकर बालक आलौकिक आनंदानुभूति करता हुआ उसमें अपनी इच्छाओं,आकांक्षाओं,विश्वासों,मान्यताओं और आवश्यकताओं के अनुरूप अपनी ही छवि के दर्शन करने लगता है।

तलाश सूरज कीइस संकलन की पहली कहानी हैं। इस कहानी में जानवरों द्वारा सूरज की तलाशकरते हुए यह दर्शाया गया हैं, अगर सूरज नहीं होता तो किस तरह घुप्प अंधेरा छा जाता हैं और समस्त जीव-जंतुओं का जीवन त्राहिमाम हो जाता। बच्चों में सूरज की आवश्यकता के प्रति कल्पनाशीलता को जगाने के लिए लेखिका ने भले ही सोनू चूजे, बतख, उधम चूहा, पूसी बिल्ली, मोती कुत्ता या मगरमच्छ जैसे जलचर व थलचर जीवों का आधार लिया हो। मगर उनका मुख्य उद्देश्य सृष्टि के प्रारम्भ से शक्ति पुंज के रूप में पूजे जा रहे खगोलीय पिंड सूरज की ओर बच्चों का ध्यान आकृष्ट कर लौकिक व अलौकिक शक्तियों के बारे में बाल-जगत में अपना संदेश पहुंचाना हैं कि बिना सूरज के हम पृथ्वीवासी जी नहीं सकते। 
नटखट तितलीकहानी में अलबेली तितली अपनी मां के बीमार होने की अवस्था बगीचे के सुंदर-सुंदर फूलों जैसे चमेली, गेंदा, चंपा, द्वारा कहने व लुभाने पर भी मकरंद नहीं लेकर गुलाब के फूल से मकरंद एकत्रित करना चाहती हैं, तो गुलाब का फूल उसे कांटा चुभा देता हैं। उस अवस्था में वह गिरते-मरते अपने आपको बचाते हुए घर पहुंचती हैं। लेखिका का कहने का आशय यह हैं कि हमें बिना किसी प्रलोभन में आए अपने ध्येय लक्ष्य में सफलता प्राप्ति के लिए स्थिर मन से प्रयास करना चाहिए। बचपन से अगर यह विचार धारा किसी बालक के मन-मस्तिष्क में उतार दी जाती हैं तो वह कभी भी बाहरी आकर्षण के चक्कर में नहीं पड़ेगा वरन सहज मिले सो अमृत हैंवाली उक्ति को अपने जीवन का विशेष-सूत्र बना देगा।
अनोखा मुकाबलाकहानी में चूहे और हाथी के मल्ल-युद्ध की राजा शेर द्वारा स्वीकृति दिया जाना इस बात का द्योतक है कि अक्ल बड़ी या भैंस? चूहा छोटे होते हुए भी विषम परिस्थितियों में अपनी बुद्घि का इस्तेमाल कर हाथी जैसे ताकतवर जानवर को मल्ल-युद्ध के अखाड़े के नीचे सुरंग बनाकर उसे खोखला कर चित्त कर देता हैं। एक और बात इस कहानी में देखने को मिलती है, वह है आधुनिक  प्रबंधन-प्रणाली के अनुरूप किसी भी प्रकार की समस्या या व्यवधान आने पर निष्ठापूर्वक सामूहिक रूप से लिया जाने वाला निर्णय उसका सही समाधान हो सकता है। जिस तरह चूहे की जान पर आफत आने पर उसकी बिरादरी वालों की मीटिंग बुलाकर उसे बचने का उपाय खोजने के लिए विचार मंथन चलता रहा, ठीक उसी तरह आधुनिक औद्योगिक संस्थाएं किसी भी प्रकार की चुनौती आने पर उसके सारे कर्मचारी व अधिकारी बैठकर अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए सही निर्णय लेने का प्रयास करते है। यह सही कहा गया हैं, बुद्धि बड़ी होती हैं न कि भैंस । 
बेचारी चुनियाएक चुनिया बंदरिया की कहानी हैं, जो किसी दूर बस्ती से कुछ सामान चुराकर लाती है कभी जूता, कभी चाबी का छल्ला, कभी आइना और बदले में जंगल के प्राणियों से कुछ ना कुछ खाने के लिए सामान लेती रहती है। इस वजह से उसकी यह चोरी करने की आदत बनती जाती हैं। अंत में वह बस्ती के लोगों द्वारा पकड़ ली जाती है। इस प्रकार लेखिका ने इस छोटी-सी कहानी के माध्यम से एक तीर से दो निशान साधे हैं। पहला चोरी करना गुनाह है, उसके परिणाम खतरनाक हो सकते है। दूसरा पराधीन सपनेहुं सुख नहीं। कोई भी प्राणी किसी के भी अधीन रहना पसंद नहीं करेगा। जब वह बंदरिया मदारी की गुलाम हो गई तो मदारी जो-जो कहता ,वैसे-वैसे वह नाच दिखाती। नई दुल्हन का नखरा बताती, दूल्हे की अकड़ बताती, बुढ़िया की खांसी बताती, घाघरा-चोली पहने चुनिया के करतबों पर बच्चे तालियां बजाते, पर वह उदास रहती। काश, वह आजाद होकर जंगल लौट पाती! 
दरबारी ढोलएक ऐसी कहानी हैं जिसमें ढिंढोरा पीटने वाला ढ़ोल जंगल में कही गिर जाता है तो जंगल के छोटे-छोटे जानवर उस पर कूदते-फांदते निकम्मा ढोल! निकम्मा ढोल!कहकर चिढ़ाते हैं। वह ढोल अपने पुराने दिनों की याद से दुखी हो जाता हैं और उन दिनों को याद कर आकाश की ओर देखते हुए बजना शुरू हो जाता हैं, यह कहते हुए कि वर्षा हो सकती है! यह खबर सुन जंगल के सारे जानवर खुश हो जाते है और उनकी बातचीत सुनकर ढोल खुश हो जाता है। एक बार झूठ-मूठ तूफान आने की सूचना दे देता हैं वह ढोल। वह सुनकर जंगल के जानवर सारी रात चिंता में बिताते हैं तो वह प्रतिज्ञा लेता हैं कि जीवन में ऐसा कभी नहीं करेगा। एक दिन पहाड़ों की ओर से उड़ती धूल देखकर दुश्मन के आने की सूचना देता है तो जंगल के राजा ने आपातकालीन सभा बुलाकर महामंत्री, सेनापति सभी के साथ युद्ध की रणनीति बनाकर शत्रुओं को खदेड़ने में सफल हो जाता हैं। और इस कार्य में सहयोग करने के लिए उस बेकार पड़े ढोल को दरबारी ढोल बना देता है। 
विषधर का शौर्यमें सांप के बच्चे अर्थात् किसी सपोले को एक बाज झपट कर उठा लेता हैं और उसे एक अनजान जगह में फेंक देता हैं। जैसा कि अक्सर होता आया है कि कोई भी साधारण जीव-जंतु सांप से डरते हैं, विषधर होने के कारण। इस वजह से पेड़ पर रह रहे सारे पक्षी भी डर जाते हैं और उसे उस पेड़ में शरण नहीं देने की बिनती करते है। मगर वह पेड़ दयालु होता है और अपनी खोल में रहने के लिए दे देता है। सुबह जब दो आदमी पेड़ काटने के लिए आते है तो उसके कुल्हाड़ी की आवाज ठक्कसुनकर सारे पक्षी भाग जाते हैं, मगर वह विषधर फन उठाकर उनका सामना करने के लिए पेड़ के खोखल से बाहर निकलता है। उसे देखकर वह दोनों आदमी वहां से भाग जाते है। इस तरह वह विपत्ति में सबके काम आता है। उसका यह साहस देख उसे पेड़ के सारे जीव-जन्तु उसे वहां रहने का निवेदन करते है। उसे नाग देवता के रूप में सम्मानित करते है।
कमजोर का महत्त्वकहानी में डॉ॰ विमला भंडारी ने दो बड़े पेड़ों तथा कुछ छोटे पौधों के माध्यम से समाज में कमजोर वर्ग की सहायता करने का संदेश दिया हैं  कि तकलीफ के समय वह कमजोर वर्ग ही बड़े लोगों की सहायता करेगा। एक पेड़ जिसे अपनी विशालता पर घमंड होता है, वह अपने नीचे छोटे-मोटे पेड़-पौधों को उगने नहीं देता। जबकि दूसरा पेड़ अपने नीचे छोटे-मोटे पेड़-पौधों की उगने में हर संभव सहायता करता हैं। एक बार तेज बारिश के समय घमंडी विशाल वृक्ष के नीचे की मिट्टी पानी में बहकर चली जाती है और तेज हवा के झोंकों में वह पेड़ उखड़ जाता है। जबकि दूसरा सहृदय पेड़ के नीचे पनपे पौधे मिट्टी को बांधकर रखते है और तेज हवाओं के थपेड़े भी खुद सहन कर पेड़ को गिरने से बचाते है। तब घमंडी पेड़ को इस बात का अहसास होता है, जिन्हें वह कमजोर समझ रहा था, मगर दुख के समय काम आनें वाले तो वो ही है। हितोपदेश पंचतंत्रके रचयिता ने जिस तरह प्रकृति, जंगल व जानवरों से जो कुछ सीखा है और लिपिबद्ध किया हैं, ठीक इसी तरह डॉ. विमला भंडारी की कुशाग्र बुद्घि ने भी प्रकृति व विज्ञान के अन्योऽन्याश्रित संबंधों पर अपनी विहंगम दृष्टि डालते हुए समाज के भीतर गरीब व अमीर के बीच सौहार्द्र-संबंध तथा जियो व जीने दोके सिद्धांत की पुष्टि करते हुए बाल-मानस पर स्मरणीय कथानक के रूप में एक प्रेरणादायी कहानी का निर्माण किया है। 
इस कहानी-संकलन की कहानी उपहारएक ऐसी कहानी है, जिसमें दीनू अपने प्रधानाचार्य की सेवा-निवृत्ति पर कक्षा के सभी लड़कों के साथ मिलकर उन्हें घड़ी उपहार देना चाहता है, जिसके लिए उसे दो रुपए की जरूरत होती हैं। मगर दीनू एक गरीब परिवार का लड़का होता हैं, उसके पास इतने रुपए होना मुश्किल होता हैं। उस अवस्था में वह हीन-भावना का शिकार होने लगता हैं। तभी उसके पिताजी एक अमरूद का पौधा लाकर प्रधानाचार्य को उपहार देने के लिए देता हैं। यह अनोखा उपहार पाकर न केवल प्रधानाचार्य गदगद हो जाते हैं, वरन स्कूल के सभी बच्चों को अपने साथ ले जाकर घर के आंगन में गड्ढा खोदकर उसे रोप देते है। यह देख दीनू अत्यंत खुश हो जाता हैं। लेखिका ने इस कहानी में दो चीजों की तरफ विशेष ध्यान आकर्षित किया हैं। पहला, किसी को भी उपहार देने के लिए यह जरूरी नहीं हैं कि आप दूसरों की नकल करें तथा अपनी कमाई से ज्यादा उपहार दें। अपनी क्षमता के अनुसार दिया गया अंशदान भी कोई कम नहीं होता है। रामसेतु बनाने में जितना योगदान वानर सेनाओं का रामनाम लिखकर पत्थर डालने में हैं। उतना ही योगदान बालू के ढेर में अपनी पूंछ लगाकर बालू के कण फेंक कर दिए जाने वाले गिलहरी के अपने योगदान में हैं। अर्थात् दान, उपहार या कोई भी आनुषंगिक कार्य हो, उसमें दिए जाने वाले अंशदान में भावना प्रमुख होती हैं। दूसरा जैसे कि गीता में आता है। भगवान पत्रं पुष्पं फलं तोयं' अर्थात पत्र,पुष्प,फल या जल से भी खुश हो जाते हैं। इसी प्रकार प्रधानाचार्य भी अमरूद की पौध पाकर प्रसन्न हो जाते हैं। न कि उन्हें किसी भी प्रकार के भौतिक वस्तु की लालच या लोभ है। लेखिका की कलम ने इस प्रकार एक छोटी-सी बाल कहानी के माध्यम से गागर में सागरभरने की परिकल्पना की हैं। जो उनके मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ उच्च कोटि के दर्शन को दर्शाती हैं। 
अगली कहानी तुम्हारा शहरअत्यंत ही रोचक व प्रेरणास्पद बाल-कहानी है। इस कहानी में लेखिका ने एक कबूतर के माध्यम से गांव व शहर में तुलना कर न केवल शहरवासियों का अपने चारों तरफ के परिवेश की सुरक्षा, सौंदर्य तथा सौहार्द्रता के बारे में ध्यानाकृष्ट किया है। उस शहर से तो वह गांव अच्छा हैं,  जहां खाने को   स्वच्छ  भोजन मिलता हो, जहां   पीने को साफ पानी नसीब होता हो,   जहां  सांस लेने के लिए शुद्ध आक्सीजन मिलती हो, और जहां लोगों में अतिथि देवो भवः' की धारणा जीवित हो। जबकि शहर में किसी भी प्रकार की सौहार्द्रता नही हैं, परिवेश में गगनचुम्बी इमारतें, मिल व धुंआ ही धुंआ, पीने को दूषित जल और खाने में नैसर्गिक भोजन के स्थान पर फास्ट-फूड मिलते हों। ऐसी अवस्था में लोगों को शहर क्यों रास आएंगे, जब कबूतर जैसे साधारण जीव का शहर में दम घुटने लगता हो। लेखिका ने इस कहानी में न केवल शहरों में पर्यावरण सुरक्षा को अपना मुद्दा बनाया हैं, बल्कि भारतीय ग्राम्य संस्कृति के सुसंस्कारों अतिथि देवो भवःको भी सूत्रपात किया हैं। यह कहानी न केवल पठनीय हैं, वरन चिरकाल तक स्मरणीय भी।
अनजाने सबकमें लेखिका ने घर-घर के यथार्थ को सामने लाने का प्रयास किया हैं, जिसमें बाल-हठ हावी हो जाती है अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए। इस अवस्था में अगर मां-बाप अपने बच्चों को सही ढंग से समझाने का प्रयास नहीं करे तो मानवीय संवेदनाएं एक साथ तिरोहित होती नजर आएगी। साकेत अपने मम्मी-पापा के साथ दार्जलिंग घूमना चाहता हैं। उसी  दौरान दादी की फिसलने के कारण पांव की हड्डी टूट जाती हैं। मगर साकेत अपनी जिद्द पर अड़ा रहता हैं कि आप दादी को बुआ के घर छोड़कर हमारे साथ दार्जलिंग चलो। उसकी बात नहीं मानने पर वह तरह-तरह की बातें करने लगता है। तब उसकी मां यह कहकर उसे समझाती हैं, कि अगर उसकी हड्डी टूट जाती तो भी क्या वह घूमने जाने की जिद्द करता? उस समय वह समझ जाता है कि मां के मन में दादी के प्रति कितनी सहानुभूति व सेवा-भावना है और उसका हठ करना अनुचित हैं। इस प्रकार लेखिका ने इस कहानी के माध्यम से जाने-अनजाने अगर बच्चों को सही सबक सिखाएं जाए तो वे आसानी से वस्तु स्थिति को भांप कर सही निर्णय लेने में सफल सिद्ध होंगे। उससे ज्यादा, उनके दिलों में भी बड़े-बुजुर्गों प्रति मान-सम्मान, श्रद्धा, प्रेम, आत्मीयता तथा सहानुभूति जैसे गुण बरकरार रहेंगे।
   2. जंगल उत्सव:
  डॉ॰विमला भंडारी के इस बाल कहानी-संग्रह में आठ कहानियां है।नकलची बंदरडॉ॰ विमला भंडारी की हितोपदेश की तरह बंदरों की उन कहानियों में से एक कहानी है, जो राह चलते राहगीर के पेड़ के नीचे सुस्ताने पर उसकी टोकरी में रखी सारी टोपियां उस पेड़ पर रह रहे बंदर ले जाते है और जब उसकी नींद खुलती है तो खाली टोकरी देखकर वह इधर-उधर देखने लग जाता है और जब उसका ध्यान पेड़ के ऊपर टोपी पहने बंदरों की तरफ जाता है तो वह उन्हें पत्थर मारना शुरू करता है, यह देख बंदर उसे आम तोड़कर उसकी तरफ फेंकना शुरू करते हैं। यहीं से वह राहगीर बंदरों की नकल प्रवृत्ति को पहचान लेता है और उस प्रवृत्ति का लाभ लेने के लिए अपनी टोपी को उतार कर नीचे फेंक देता है जिसे वह बटोरकर अपनी राह चल देता है। ठीक इसी तरह विमला जी ने बंदर को नानी के घर जाते समय रास्ते में चुहिया के नमस्ते करने के अंदाज, चिड़िया के घोंसले बनाने तथा सूंड़ से अपने शरीर पर पानी फेंकते हाथी की नकल करने की वजह से वह जग हंसाई का पात्र बन जाता है। जो बाल-मन को मौलिक सृजन की ओर प्रेरित करने के साथ-साथ नकल करने की आदत से निजात पाने की ओर संकेत करती एक शिक्षाप्रद कहानी है।
टीटू ओर चिंकीएक पेड़ पर रह रही गिलहरी और चिड़िया तथा उनके परिवार की अनुकरणीय कहानी है जो संघे-शक्ति कलयुगेएकता की ताकत के साथ-साथ आदर्श पड़ौस के महत्त्व को उजागर करती है। जब छोटे बच्चों में जाति-बिरादरी को लेकर एक ही मोहल्ले में लड़ाई की नौबत आती है तो यह कहानी आपत्तिकाल में उन्हें एक दूसरे की मदद कर एकजुट होकर रहने की प्रेरणा भी प्रदान करती हैं। इससे पहले की बालमन इधर-उधर की बातों को सुनकरश्रुति-विप्रति पन्नाबन अपने-अपने पूर्वाग्रहों को जन्म देना शुरू करें, ये कहानियां बच्चों के मन में निर्दोष भाव बनाए रखने के साथ-साथ साहचर्य की भावना को बलवती करने में अपनी अहम भूमिका अदा करती है। बारिश के समय में पेड़ की खोखल में जहां चिड़िया के अंडे सुरक्षित रहते है वहीं बाढ़ के समय में गिलहरी के अंडे घोंसले में महफूज रह सकते है। जब सांप खोखल तक पहुंचने की कोशिश करता है, चिड़िया सपरिवार पेड़ के तने पर चोंच मारना शुरू कर देती हैं, जिससे पेड़ का लसलसा क्षार निकलकर सांप के चढ़ने के मार्ग को अवरूद्ध कर दें, ठीक उसी तरह जब किसी काले कौए का अक्समात घोंसले पर आक्रमण हो तो गिलहरी अपने पंजों का प्रयोग करते हुए उसे भागने पर विवश कर देती है। इस तरह के प्रयोग बालकों के निष्कपट मन में साहचर्य की भावना को बल देती है। यह कहानी न केवल स्मरणीय है, वरन भाषा-शैली से भी अत्यन्त ही सुसमृद्ध है।
राजस्थानी लोकोक्ति देख पराई चुपड़ी मत ललचावै जीव, रूखी सूखी खाईकै ठण्डा पानी पीवको चरितार्थ करती ऐसे मिला निमंत्रणकहानी शालू खरगोश के हरे-भरे लहलहाते चने के खेतों को देखकर जब सोहन मुर्गी के मुंह में पानी भर आता है और खरगोश से खाने के लिए मांगती है। प्रत्युत्तर में खरगोश उसे लताड़ देता है और मेहनत करने की सीख देता है। अपमान सहकर मुर्गी स्वावलंबी होने के लिए कृतसंकल्प हो जाती है और देखते ही देखते वह भी लहलहाते खेतों की मालकिन बन जाती है। कहने का बाहुल्य यह है, किसी अपमान का उद्देश्य अगर सकारात्मक हो तो वह भी मंजिल पाने में सहायक सिद्ध होता है। ऐसे भी किसी के सामने मांगना या किसी वस्तु के लिए गिड़गिड़ाना अत्यन्त ही शर्मनाक व शास्त्र विरुद्ध हैं। कबीरदास ने तो यहां तक कहा है मांगन मरण समान है, मत कोई मांगों भीखअर्थात मांगना मृत्यु के तुल्य है जबकि परिश्रम के बलबूते पर दुनिया में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसे इंसान पा नहीं सकता हो, मगर यह भी सत्य है कि सोते शेर के मुंह में शिकार नहीं घुसता है। जीवन में सफल होने पर सब कोई पूछता है, अपने घर आने का निमंत्रण देता है। ऐसे अनेकानेक जीवन के यर्थाथ दर्शन को समेट कर ऐसे मिला निमंत्रणकहानी के माध्यम से पहुंचाने में डॉ. विमला भण्डारी सफल हुई है।
बाल-साहित्य अनेक विषयों पर लिखा जा सकता है। गणित, भौतिक, रसायन, भूगोल, इतिहास, समुद्री विज्ञान, खगोल विज्ञान, पता नहीं कितने-कितने प्रकृति के अनसुलझे रहस्यों को उद्घाटित करने के लिए न केवल बाह्य जगत से भी बहुत कुछ तत्त्व लिए जा सकते है। डॉ. विमला भंडारी की कहानी छोड़ो आपस में लड़नान केवल समुद्र विज्ञान, मछलियों के प्रकार जैसे झींगा, केटलफिश, सटर फिश मत्स्य जंतुओं जैसे आक्टोपस तथा मछुआरों से होने वाले खतरों की ओर बाल पाठकों का ध्यान आकर्षित करती है, वरन समुद्री जीवों के अंतर्मन की व्यथा को उजागर करते हुए किसी भी प्रलोभन में आकर लड़ने-झगड़ने से होने वाली क्षति को जिस स्तर पर प्रकट करती है उसी धरातल पर मनुष्य समाज को भी सचेत करती है कि किसी भी तरह प्रलोभन उनके वंश के लिए भी घातक सिद्ध हो सकता है। जिसे देखकर अगर वे आपस में लड़ना-झगड़ना शुरू कर दें। वृहद स्तर पर राष्ट्र को भी संदेश  देती है यह कहानी कि देश के आंतरिक लड़ाई में गृहयुद्ध व मारधाड़ की अवस्था में जाल लेकर आए हुए मछुआरे की तरह अंतरराष्ट्रीय जगत के किसी विराट खतरे को आमंत्रित करने के सदृश्य है। भले ही डाॅ. विमला भंडारी बाल साहित्यकार है मगर उनकी कहानियों में कथानक एक विस्तृत आयाम को अपने भीतर समेटे हुए है। जो न केवल स्थानीय राजनीति वरन राष्ट्रीय, अतंरराष्ट्रीय राजनीति व  विदेश नीति जैसे गंभीर मुद्दों पर एक बेंच मार्क बनकर सोचने को बाध्य कर देती है।
बच्चे दिल के सच्चे होते है। मगर बचपन से ही स्कूलों में किसी की पेंसिल, रबर, स्केच-पैन अच्छी देखकर उससे बिना पूछे उठा लेने की आदत पड़ जाती है और धीरे-धीरे चोरी के प्रारंभिक कदम शुरू हो जाते है। डॉ. विमला भंडारी की कहानी सुलझा चोरी का रहस्यपढ़ते समय मन ही मन एक दूसरी कहानी याद आने लगी। जिसका कथानक होता है- एक बच्चा बचपन में छोटी-छोटी चोरियां करता है मगर मां जानकर भी उसे टोकती नहीं है, वरन और चोरी करने के लिए प्रोत्साहित करती है। आगे जाकर नतीजा यह निकलता है कि यह अपने जीवन में बहुत बड़ा चोर बन जाता है और उसे फांसी की सजा हो जाती है। फांसी लगाने से पूर्व जब जल्लाद उसे अपनी अंतिम इच्छा के बारे में पूछता है तो तो वो कहता है कि उसे अपनी मां से बात करनी है। जब मां को उसके पास बुलाया जाता है तो कान में कुछ कहने के बहाने उसका एक कान काट लेता है। जब उससे उसका कारण पूछा जाता है तो उसका उत्तर होता है कि जब मैंने चोरी करना सीखा था, मां जानती थी और अगर उस समय वह मुझे डांट-फटकार कर यह काम करने के लिए मना करती और निरुत्साहित करती तो निश्चय ही आज मुझे यह दिन देखने को नहीं मिलता। इस तरह फांसी की सजा नहीं मिलती और मैं एक अच्छा इंसान बन गया होता। जिस तरह चैरिटी बिगेनस एट होमठीक उसी तरह अच्छे गुणों की विकास स्थली भी घर ही हुआ करता है। सुलझा चोरी का रहस्य कहानी में एक शृंखला बताई गई कि किस तरह कौए राजकुमारी का हार अनार के दाने समझकर उठा लेता है और जब उसे खा नहीं पाता है तो किसी पेड़ की टहनी के नीचे फेंक देता है जिससे खींचकर चुनचुन चुहिया अपने बिल में ले जाती है और भूरी बिल्ली मौसी के किसी पार्टी में जाने पर तैयार होने के लिए मांगने पर वह उसे पहनने के लिए दे देती है, जहां इंस्पेक्टर गेंडाराम उसे चोर समझकर गिरफ्तार कर लेता है। गहराई से पूछताछ करने पर सच सामने आता है कि कौआ वास्तविक अपराधी है। 
इस कहानी के माध्यम से डॉ. विमला भंडारी ने न केवल बाल-जगत को यह संदेश दिया है कि किसी दूसरों के सामान को कभी भी नहीं उठाना चाहिए। साथ ही साथ वयस्क समाज में शृंखलाबद्ध चोरी की ओर ध्यान खींचा है कि किस तरह किसी की कार चोरी होने पर गैरेज में आती है और वहां से कोई ओर उठा ले जाता है तो वास्तविक अपराधी का पता करने के लिए पुलिस द्वारा छानबीन के बाद ही सही नतीजों पर पहुंचा जा सकता है। इस तरह यह कहानी न केवल बाल-जगत के लिए शिक्षाप्रद है वरन सम्पूर्ण मानव जाति के लिए उपयोगी है।
 लेखिका जानती हैं कि बच्चों में भारतीय संस्कार, सकारात्मक सोच,प्रकृति,जीव-मात्र के प्रति प्रेम-संवेदना और जीवन-मूल्यों के प्रति आस्था जगाने का सर्वोत्तम काल है-बाल्यावस्था। बच्चों को उपदेश या गहन गंभीर विषयों द्वारा नहीं, खेल-खेल में उनकी रूचियों, आवश्यकताओं और परिचित परिवेश के साक्ष्य से अर्जित ज्ञान को आत्मसात कराया जा सकता है। सच तो यह है कि ये पुस्तक मात्र अक्षर ज्ञान नहीं कराते, अपितु जीवन जीने की कला,पशु,पक्षियों,प्रकृति और मानव-मात्र से प्रेम करना सिखाते हैं, अत्याचार के विरोध की जागृति प्रदान करते हैं और राष्ट्रीयता का भाव एवं जीवन मूल्यों में आस्था हैं।

3. बालोपयोगी कहानियाँ
डॉ॰विमला भंडारी का कहानी-संग्रह बालोपयोगी कहानियाँ में विज्ञान पर आधारित उनकी स्वरचित कहानियों का संकलन है, जिसमें ऊर्जा-संरक्षण,एक्स-रे, परमाणु बिजलीघर, पर्यावरण, नीम के गुण, प्रकाश-संश्लेषण आदि वैज्ञानिक प्रक्रियाओं का अत्यंत ही सरल, सहज व बाल सुलभ भाषा में वर्णन किया गया है।
ऊर्जा संरक्षण कहानी में नन्ही अनुपमा अपनी माँ से ऊर्जा-संरक्षण के बारे में जानकारी प्राप्त करती है। आधुनिक ज़माने की सारी मशीनों की गतिशीलता के पीछे ऊर्जा के जिस स्वरूप की व्याख्या लेखिका ने की है,उसमें उन्होंने ऊर्जा के प्राचीन से लगाकर अत्याधुनिक स्रोतों की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया गया है,उदाहरण के तौर पर जैसे लकड़ी, कोयला, मिट्टी का तेल, पेट्रोलियम, विद्युत-ऊर्जा, खनिज ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा, सौर ऊर्जा और आणविक ऊर्जा इत्यादि के स्वरूपों की व्याख्या के माध्यम से लेखिका ने ऊर्जा के पारंपरिक और गैर-पारंपरिक स्रोतों का वर्णन किया हैहाँ विश्व में बढ़ती आबादी के कारण ऊर्जा के प्राकृतिक भंडार कम होते नजर आते हैं, जिसके फलस्वरूप भौतिक सुख-सुविधाओं के आदी मनुष्य के लिए ऊर्जा-संरक्षण का महत्त्व उतना ही महत्त्व जरूरी हो जाता है। इस हेतु लेखिका ने संचार-माध्यमों के प्रयोग से जन-जागरण के प्रति महत्ता पर प्रकाश डाला है। गैस की बचत के लिए प्रेशर कुकर का प्रयोग, अनावश्यक कार्यों में बिजली उपकरणों के दुरुपयोग रोककर विद्युत ऊर्जा की बचत के साथ-साथ पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के तरों से बचने के लिए सौर (अक्षय) ऊर्जा के उपयोग करने के भी लेखिका ने सुझाव दिए हैं। इस प्रकार बचपन से ही बच्चों को ऊर्जा-संरक्षण के महत्त्व को समझाकर एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का बीजारोपण किया है।
साकार होता सपना कहानी ऊर्जा संरक्षण कहानी का एक विस्तार है, जिसमें मनीष और दीपाली अपने नानाजी के घर बार-बार बिजली की आँख-मिचौनी देखकर परेशान हो जाते हैं, तो उनके नानाजी कोयला और पानी से पैदा हो रही बिजली की अनवरत खपत से निपटने के लिए परमाणु बिजलीघर की आवश्यकता के बारे में बताते है, जिसमें बिहार की सिंहभूमि के जादूगोड़ा में यूरेनियम की भूमिगत खदानों, भारत में परमाणु बिजली घरों के स्थल, जैसे नादोरा, कोटा, तारापुर, कलपक्कम परमाणु ऊर्जा आयोग, भारत की ऊर्जा-नीति भारतीय परमाणु बिजली निगम लिमिटेड आदि की संक्षिप्त गतिविधियों की तरफ बाल-पाठकों की रुचि जागृत करने का लेखिका ने अथक प्रयास किया है।
रोजी का हुआ एक्स-रे कहानी खो-खो खेलते हुए राधिका के असंतुलित होकर गिरने से पैर मुड़ने के कारण प्राथमिक उपचार करने के बाद फ्रेक्चर की जांच के लिए एक्स-रे व्करवाने करवाने के डाक्टरी निर्देश से शुरू होती है  । उसके बाद एक्स-रे की परिभाषा, चुंबकीय विकिरणों के प्रकार, एक्स-रे का आविष्कार, सी॰टी स्कै, अल्ट्रा-साउंड, एम॰आर॰आई द्वारा शरीर के किसी भी भाग के त्रिआयामी चित्र खींचने की प्रक्रिया की साथ-साथ विकिरणों का मनुष्य-शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों की ओर लेखिका ने केवल विज्ञान में रुचि रखने वाले बाल-पाठकों,वरन समस्त किशोर व प्रौढ़ पाठकों को विज्ञान की इन नई उपलब्धियों की जानकारी प्रदान की है।
पर्यावरण की रक्षा एक ऐसी बाल कहानी है, जिसमें सरकार द्वारा किसी गाँव में प्रदर्शनी के माध्यम से पर्यावरण की सुरक्षा हेतु उठाए गए अनेकानेक कदमों को जन-जागरूकता अभियान में शामिल किए जाने का कथानक है। इस प्रदर्शनी के माध्यम से   रियो दि जेनेरो के पृथ्वी शिखर सम्मेलन से प्रारम्भ कर  ओज़ोन परत, जल-थल-नभ प्रदूषण, घातक कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभावों की ओर इंगित करते हुए लेखिका ने आने वाली पीढ़ी की रक्षा के लिए अभी से पर्यावरण सुरक्षा की ओर जागरूक होने का संकल्प लेने के लिए पाठकवृंद से अपील की है।
नीम का कड़वापन कहानी में लेखिका ने नीम की उपयोग के बारे में विस्तार से जानकारी दी है । नीम की टहनी से दातुन, नीम की पत्तियों का नहाने में प्रयोग, नीम की सूखी पत्तियों द्वारा अनाज के भंडार में कीड़े लगने से बचाने नीम के फूल (खिचड़ी) व नीम का फल (नीम कौड़ी) के प्रयोग से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ नीम की सूखी पत्तियों को जलाकर धुएँ द्वारा मच्छर भगाने, चर्म रोग से बचाव आदि गुणों की सटीक व्याख्या अत्यंत ही सरल भाषा में की गई है
सबसे बड़ा कौन कहानी में कमल का फूल अपने आपको बड़ा समझता है तथा पत्ती को तुच्छ। मगर जब पत्ती को सूरज किरणों के साथ मिलकर प्रकाश संश्लेषण क्रिया के माध्यम से कमल के फूल के निर्माण के लिए आवश्यक भोजन बनाने की प्रक्रिया में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में पता चलता है तो उसका  इंफीरियरिटी  कांप्लेक्स दूर हो जाता है।
विज्ञान पर आधारित विषयों को कथानक बनाकर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बच्चों की प्रवृत्तियों, क्षमताओं और उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बाल-साहित्य सृजन करना कोई सरल कार्य नहीं है। डॉ॰ विमला भंडारी के इस कहानी संग्रह को श्रेष्ठ वैज्ञानिक बालसाहित्य की श्रेणी में लिया जा सकता है, जिससे बच्चों की बौद्धिक, भावात्मक, कलात्मक रुचियों के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कल्पना-तत्व जगाने में मदद मिलती है।  
 
4. बगिया के फूल
  बगिया के फूलविमला भंडारी का एक ऐसा बाल कहानी संग्रह है जिसमें बच्चों के लिए 15 प्रेरणादायी कहानियों का संकलन है। जिस तरह जीजाबाई ने शिवाजी को बचपन से वीर गाथा सुनाकर उन्हें चक्रवर्ती राजा बनाने का संकल्प किया, ठीक उसी तरह महात्मा गांधी की माता पुतलीबाई ने उन्हें राजा हरिश्चंद्र की कहानी सुनाकर जीवन में सत्य-निष्ठा के महत्त्व व पालन हेतु प्रेरित किया, वैसे ही विमला भंडारी का कहानी संग्रह बगिया के फूलबचपन से बच्चों को संस्कारवान बनाने की प्रेरणा देने वाली अनमोल कहानियों का एक संग्रह है।
नन्हा सैनिककहानी में दुश्मन देश के घायल सेनानायक की सेवा कर गोलू ने न केवल देश की परिधियों से परे मानव सेवाका उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया, वरन वसुधैव--कुटुंबकम्’’ की महत्ती भावना का भी सभी के समक्ष उज्ज्वल आदर्श प्रतिपादित किया।
अजय के दोस्तकहानी में सरकारी आवास में रहने वाले अजय की निसंगता को मिटाने के लिए कुत्ते के छोटे-छोटे, गोल-मटोल, झबरीले बालों वाले पिल्लों से दोस्ती कर जैव-मैत्रीअर्थात जानवरों के प्रति दयाभाव को उजागर करने का कथानक है।
दीप झिलमिला उठेएक ऐसी कहानी है जो न केवल राजस्थान वरन उत्तर भारत के अधिकांश इलाकों में अभी भी बाल-विवाह प्रथा के प्रचलन को दर्शाती है। कम उम्र में लड़कियों की शादी उसके पिता वरपक्ष से पैसे लेकर अपने शराब-सेवन जैसे दुर्व्यसनों की पूर्ति के लिए कर देते है। इस कहानी में आलोक अपने सहपाठियों के साथ मिलकर प्रधानाध्यापक को बाल-विवाह की शिकायत दर्ज करवाकर उनकी सहायता राधाबाई की नाबालिग लड़की कमला का विवाह होने से रूकवा देता है। शिक्षा के व्यापक प्रचार से किस तरह छोटे-छोटे बच्चों की मानसिकता में परिवर्तन आता है, उसको दर्शाती यह कहानी आधुनिक सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अपना अनोखा स्थान रखती है।
बच्चों को उनके जन्म-दिवस पर उपहार देना हर्ष का विषय है, मगर कोई ऐसा उपहार उन्हें बचपन में दिया जाय, जो उसके जीवन को संवार दे तथा उसके व्यक्तित्व में अनूठा निखार लाये। ऐसे उपहार की अवधारणा विमला भंडारी की कहानी अनूठा उपहारमें मिलती है जब पुलकित की मौसी उसे उसके जन्म-दिवस पर अंजलि में थोड़ा पानी देते हुए शपथ दिलवाती है कि उसका यह संकल्प उसके जीवन की प्रतिज्ञा बन जाती है। इस तरह सामाजिक मूल्यों को स्थापित करती विमला भंडारी की कहानियां अपने आप में अनुपम है।
नादान शरारतगली के कुछ शरारती लड़कों को अनियंत्रित होकर होली के समय चंदा नहीं देने वालों के खिलाफ जानबूझ कर की जाने वाले जानलेवा साजिशों को सामने लाती है। चंदा नहीं देने वाले रहमान के घर पेड़ पर चढ़कर पेट्रोल से आग लगाते समय शरारती माधव व देवराज दोनों असंतुलित होकर न केवल पेड़ की टहनी से गिर जाते है, वरन अग्नि-विभीषिका के शिकार हो जाते हैं। इस तरह बच्चों की नादानी भर शरारतें नहीं करने का आवाहन करती यह कहानी उन्हें सही रास्ते पर चलने की दिशा दिखाती है।
मां और बेटी का झगड़ा मनोवैज्ञानिक स्तर पर स्वाभाविक होता है। इस विषय पर काफी शोध भी हो चुके है। मदर एण्ड डाटर कॉन्फ्लिक्ट' विषय पर प्रख्यात नारीवादी लेखिका डॉ॰ सरोजिनी साहू कहती है कि मां और बेटी की आशाएँ,आकांक्षाएं तथा उम्मीदें अन्योऽन्याश्रित होती है। मां की इच्छा होती है कि बेटी उसके घरेलू-कार्यों के अतिरिक्त उसके सुख-दुख में काम आए और वैसी ही बेटी मां को दुनिया के दुख-दर्द से बचाने के लिए ढाल के रूप में प्रयुक्त करती है। 
सहेली की सीखकहानी के कथानक में प्रज्ञा और उसकी मां के बीच उतने आत्मीय संबंध नहीं होते है, जितने कि उसकी सहेली शैलजा ओर उसकी मां के बीच। जब शैलजा इस सौहार्द संबंध का रहस्योद्घाटन करती है तो प्रज्ञा की बुद्धि में यह बात घुस जाती है ओर वह भी अपनी मां के घरेलू कामों में हाथ बंटाना शुरू कर देती है। इस छोटी-सी बाल कहानी के माध्यम से लेखिका ने इस विवादित विषय पर विश्व-व्यापी दृष्टि को आकर्षित करने का सराहनीय प्रयास किया है।
प्रश्नों का पिटाराएवं झीलों की नगरीइस संकलन की दो शिक्षाप्रद कहानियां है, जो बच्चों को राष्ट्र-गान, राष्ट्र-चिह्न, राष्ट्रीय पशु-पक्षी व फूल तथा उदयपुर की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासतों जैसे सहेलियों की बाड़ी, महाराणा प्रताप का स्मारक, फतेहसागर झील में बोटिंग के आनंद, पिछोला झील, राजमहल, दूधतलाई पार्क, म्यूजिकल फाऊंटेन तथा वहां के सजे-धजे बाजार के बारे में जानकारी प्रदान करती है। ऐसी कहानियां न केवल बच्चों के मन में नई-नई जानकारियों को वृद्धि करने के बारे में प्रेरित करती है, वरन राष्ट्रीय धरोहरों व उनके महत्त्व के प्रति जागरूक भी बनाती है।
इसी संकलन की कहानी लाल आंखेएक घरेलू कहानी है, जो जैसा बाप वैसा बेटाउक्ति चरितार्थ करती है। शराबी बाप हजारी की लाल आंखें देख तेरह वर्षीय मुकुल उनका अनुकरण करते हुए अपनी आंखों को लाल करने के लिए शराब के घूंट चखना शुरू करता है। धीरे-धीरे वह उसकी आदत में परिणित हो जाता है और शराब खरीदने के लिए उसे पैसों की जरूरत होती है। उसके लिए वह अलमारी का ताला खोलकर पांच हजार रुपये चोरी कर लेता है। जिस तरह चुंबक लोहे के तरह-तरह के सामानों को अपनी ओर आकृष्ट करता है, वैसे ही बचपन की एक गंदी आदत तरह-तरह की बुरी आदतों को अपनी और खींचने लगती है। मुकुल की चोरी का पर्दाफाश तो तब होता है, जब वह चोरी के बचे हुए रुपये लेकर बचने के लिए कहीं भागता है और भागते-भागते वह दुर्घटना का शिकार हो जाता है। तब जाकर उसके पिता की आंखें खुलती है और वह जीवन-पर्यन्त इस प्रकार की गलती नहीं करने का संकल्प लेता है।
कभी-कभी हमारे साथ ऐसी घटनाएं घटने लगती है कि हम भयाक्रांत हो जाते है और किसी अनजान खतरे के प्रति आशंकित हो उठते है। और यह अगर किसी छोटे बच्चे के गुम होने जैसी बात हो तो फिर कहना ही क्या? हमारे मन-मस्तिष्क में अन्तर्निहित डर तरह-तरह खौफनाक आशंकाओं का रूप लेने लगता है जबकि यथार्थ कुछ और होता है। डॉ. विमला भंडारी की कलम ने इस मनोवैज्ञानिक स्तर का रेखांकन बहुत ही सशक्त रूप से अपनी कहानी जब निक्की खो गईमें किया है, जिसमें लेखिका की देवरानी कुसुम की चार वर्षीय बेटी निक्की उन्हें मिलने आती है, उनके साथ गपशप करती है और बिना कुछ बोले कहीं चली जाती है। इसी दौरान एक साधु उनके यहां भीख मांगने आता है। कुछ समय बाद निक्की को खोजती उसकी मां लेखिका के पास पहुंचती है तो वहां न पाकर वह अनेकानेक आशंकाओं से ग्रस्त हो उठती है कि कहीं उसे साधु तो हीं उठा ले गया? तरह-तरह के अपराध-बोध उनके मन-मस्तिष्क पर छाने लगते है। चारों तरफ घर में हताशा का वातावरण पैदा हो जाता है और जैसे ही घर में रोने-धोने का कोहराम शुरू होता हो जाता है वैसे ही लेखिका का ध्यान बिना कुंडी लगे बंद बैठक के कमरे की तरफ जाता है। जब उसे खोला जाता है तो शृंगारपेटी के शृंगार सामानों जैसे पाऊडर, लिपिस्टिक, नेल पालिश, चूड़ियां-बिंदी सभी को फैलाकर चुपचाप खेलती हुई निक्की वहां नजर आती है। आशंकित मां अपने सौन्दर्य-प्रसाधनों की बुरी हालत देखकर भी निक्की को खुशी से चूमने लगती है। इस कहानी में आशंका, भय के मनोविज्ञान का जबर्दस्त प्रयोग हुआ है।
यह भी देखा गया है कि हमारे घरों में अधिकतर बच्चे अपनी भूख से ज्यादा खाना थाली में ले लेते है और नहीं खा पाने के कारण उसे उच्छिष्ट समझकर नालियों में फेंक देते है। यह देश की ज्वलंत समस्या भी है। खाद्य-सुरक्षा जैसे अधिनियम भी इस संदर्भ में सरकार द्वारा पारित हुए है। भोजन सुरक्षा  देश के हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। देश में कई जगह लोगों को दो वक्त खाना भी नसीब नहीं होता है। ऐसी अवस्था में बचपन से ही बच्चों में ऐसे संस्कार पैदा कर दिए जाने चाहिए ताकि जीवन भर इस असमानता को ध्यान में रखते हुए अन्न देवता का सम्मान करें। इसी थीम पर आधारित डॉ. विमला भंडारी की कहानी सबकमें मौसी पींटू और चींटू को खाना व्यर्थ नहीं करने के लिए खेतों में ले जाकर गरीबी से जूझते किसान से मुलाकात करवाती है। यहां उन्हें यह सबक मिलता है, जो अनाज को उपजाता है उसके पास खुद खाने के लिए पर्याप्त अन्न नहीं है जबकि वे अपनी थाली के ज्यादा अन्न को उच्छिष्ट समझकर बाहर फेंक देते है।
डॉ. विमला भंडारी की अंतर्दृष्टि को दाद देनी चाहिए कि उनकी कहानियों के कथानक समाज की जूझती समस्याओं तथा उनके संभावित निदान पाने के तौर-तरीकों पर आधारित होते है। कहा जाता है बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, जैसे ही बचपन में दिए गए छोटे-छोटे संस्कार समाज व देश का अच्छा नागरिक बनने में अपनी अहम भूमिका अदा करते है । 
जहां चाह, वहां राह की उक्ति को चरितार्थ करती कहानी सफलता का राज में अभिलाषा अपनी बुआजी से अपनी सहेलियों कामनाऔर आकांक्षा से परिचय करवाती है तब बुआजी उन सभी का  ध्यान उनके नामों के अर्थ की आकृष्ट कराती है जो एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द है जिसका अर्थ होता है गहन इच्छा इन्हीं शब्दों का अर्थ बताते-बताते वह उन्हें सफलता का राज समझाने लगती है कि अगर  आपके मन में कुछ करने या कुछ बनने की अभिलाषा है तो सबसे पहले अपने भीतर एक प्रबल इच्छा शक्ति को जन्म देना होगा। प्रबल इच्छा शक्ति को साहित्यिक लोग कामना, अभिलाषा या आकांक्षा के नाम से संबोधित करते हैं। कुछ लोग भाग्य को भी सफलता का एक घटक मानते है, जबकि सत्य यह है कि भाग्य को भी सफलता का एक घटक मानते है, जबकि सत्य यह है कि भाग्य का इससे कोई लेना-देना नहीं होता है वरन चाह का पोषण पूरी संवेदना से नहीं किया जाना ही असफलता का प्रतीक है। जितनी चाह बलवान होगी लालसा उतनी ही अदम्य होगी और सफलता उतनी ही करीब होती है। केवल हवाई किले बनाने से कुछ भी हासिल नहीं होना है। सफलता के लिए मन में दृढ़-संकल्प तथा लक्ष्य का स्पष्ट आकार व रूप तय होना चाहिए जिसे पाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से जी-जान से जुट जाना ही सफलता की पहली सीढ़ी है। 
जोत जल उठीकहानी में लेखिका प्रौढ़-शिक्षा की आवश्यकता व अपरिहार्यता की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट करती है। किस तरह अमित दूध वाले अनपढ़ ग्वाले का पैसा देते समय सौ रुपये मार लेता है, किस तरह सरकारी बाबू खाली कागज पर अंगूठे लगवाकर उसकी अज्ञानता का लाभ उठाकर उसे ठगते रहते है इस कारण जब देवा पढ़ाई का महत्त्व समझकर ज्योति से पढ़ना शुरू कर देता है तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता और वह सोचने लगती है कि आखिर जोत जल उठी। 
विदेशी मेहमानदो दोस्तों की कहानी है- शिवप्रसाद और जानकीलाल। शिव प्रसाद विदेश चला जाता है और जानकीलाल भारत में रहकर किराणे का व्यापारी बन जाता है। बरसों बाद जव शिवप्रसाद उसे मिलने गांव आता है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है वह अपने स्तर पर उनके रहने, खाने-पीने की सारी व्यवस्था कर देता है। मगर ये व्यवस्था शिवप्रसाद के बेटे शेरेन को पसंद नही आती है, तो वह कहने लगता है, इंडिया में ऐसा ही होता है। उसका यह डायलोग जानकीलाल और उसके बेटे अशोक को तीर की तरह लगता है। उनके सामने अपने देश की आलोचना कतई बर्दाश्त नहीं होती। मगर मेहमाननवाजी के कारण कुछ नहीं कह पाता हैं। फिर जब उसके बच्चे शेरेन और नेरूल बिना बताये बाहर चलें जाते है तो और गली के कुत्ते उनके पीछे लग जाते है तो अशोक के दोस्त उन्हें बचाकर उनके घर ले आता है। तब शिवप्रसाद कह उठता है, भारत में ऐसा ही है। इस तरह लेखिका ने अपनी कहानी में हमारे देश के दो स्वरूपों को प्रस्तुत किया है। पहला, इंडिया, जो गरीब है और जहां सारी भौतिक सुख-सुविधाओं के सामान उपलब्ध नहीं है और दूसरा, भारत, जहां आदमी से आदमी के बीच प्रेम संबंध है। एक दूसरे के सुख-दुख में काम आते है तथा ’’वसुधैव कुटुंबकम’’  जैसे विचार  धाराओं वाले दर्शन से ओत-प्रोत है। इतनी महीन बारीकियों वाले कथानक को अपने भीतर आत्मसात कर कहानी में गूंथकर नया रूप प्रदान करने में डॉ. विमला भंडारी के अत्यंत ही संवेदनशील होने के साथ भाव-प्रवण होना है, जो समाज की सूक्ष्म-अवधारणाओं को ग्रहण कर सके। इस कहानी-संकलन की अंतिम कहानी है मां की ममतामें यह दर्शाया है कि मां अपने बेटे के हर कार्य पर ममतामयी सहमति जताती हैं, उसका बेटा जो कुछ भी करेगा, वह सही ही करेगा। इसलिए उसके द्वारा लिए हर निर्णय में सकारात्मक पहलू ही खोजती है और गलत निर्णय पर भी उसे डांटती-फटकारती नहीं है। जब मां अपने बेटे को गाय बेचने के लिए भेजती है तो वह उसकी जगह कहीं गधा, तो गधे की जगह मुर्गी, तो मुर्गी की जगह जूते तो कभी जूतों की जगह पंखों की टोपी से एक्सचेंज करता है। अंत में, वह टोपी भी नहीं बचती है, आते समय ठोकर लगने के कारण कुएं में गिर जाती है। इस वजह से वह सोचता है कि उसके द्वारा लिए गए लापरवाही व गलत निर्णय के लिए मां की डांट-फटकार सुननी पड़ेगी, मगर ऐसा नहीं होता हैं। 
मां उसके हर निर्णय का स्वागत करती है और यहां तक कि टोपी गिर जाने पर भी तनिक दुखी हुए बगैर कहती है ’’कोई बात नहीं, बेटा तुम तो सकुशल लौट आए। कहीं चोट तो नहीं लगी तुम्हें।’’
 5. करो मदद अपनी
 बाल-मन मूलतः जिज्ञासु होता है। वह निश्छल और सहज होता है,सजग होता है,लेकिन सतर्क भी होता है। बाल साहित्यकार के लिए बच्चों की इस मूल प्रवृत्ति को समझ लेना जरूरी है। इसी के साथ उसे यह भी समझना जरूरी है कि बचपन में दिए गए संस्कारों के इर्द-गिर्द ही बच्चों का पूरा व्यक्तित्व विकसित होता है, अतः बाल साहित्यकार जो कुछ लिखे उससे बालमन पर अच्छे संस्कार पड़ें।
    "करो मदद अपनी" विमलाजी का एक ऐसा बाल कहानी संग्रह है, जो बच्चों में साहस भरने के साथ-साथ अच्छे संस्कार व अपनी मदद खुद करने के लिए उन्हें प्रेरित करती है। चाची चींटी, साबूदाना, श्यामा बकरी, चुनमुन चुहिया, शरबती मकौड़े आदि को माध्यम बनाकर चाची चींटी द्वारा खीर बनवाने में श्यामा बकरी की ओर से दूध, शरबती मकौड़े की ओर से शक्कर तथा चुनचुन चुहिया की तरफ से सूखे मेवे काजू, किशमिश, बादम, चिरौंजी मिलने पर साबूदाना चाची चींटी से पूछ बैठता है कि सब आपकी मदद करने को क्यों तैयार है? उसका उत्तर होता है- 'जो खुद अपनी मदद करता है, उसकी मदद हर कोई मदद करता है।' कहानी की कथ्य शैली इतनी प्रभावशाली है कि बाल-मन के किसी कोने में इस बात का असर छोड़ने में कामयाब हो जाती है कि अर्थात् जो अपनी मदद करता है, ईश्वर स्वयं उसकी मदद करते हुए उन्निति के नये रास्ते खोलते है। फ्रायड मनोविज्ञान भी इस कथन की पुष्टि करता है कि बालमन एकदम खाली पन्ने की तरह होता है, उसने भाषायी विशेषण जैसे- शरबती, चुनचुन, श्यामा के साथ साथ नए-नए शब्द जैसे किशमिश, बादाम, चिरौंजी आदि मस्तिष्क के कोष में जोड़ते जाते हैं।जीत ली बाजमें जंगल में जानवरों की नृत्य-प्रतियोगिता में प्रतिभागी हाथी, मुर्गे, गधे, कबूतर, मोर, चुहिया में मोर के हार जाने तथा चुहिया के विजेता होने के कारणों पर सूक्ष्म अनुभवों द्वारा दृष्टिपात करते हुए मोर के पास सब-कुछ खूबियां होने के बाद भी मस्ती से झूम रही चुहिया के सामने हारने का कारण आत्मविश्वास की कमी बताया है। सफलता का यह मंत्र मन के जीते जीत है, मन के हारे हारप्रतिपादित करने में लेखिका पूरी तरह से सफल हुई है।विमला जी की दुम दबाकरकहानी ओडिया लेखक जगदीश मोहंती की कहानी स्तब्ध महारथीकी याद दिलाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि बाल कहानियों के अंदर भी वही मर्म छुपा हुआ होता है जो किशोर व प्रौढ़ पाठकों के लिए रचनाकार अक्सर अपनी रचना धर्मिता में प्रयोग करते हुए नजर आते है। कई हद तक कथानक इतना ही दमदार होता है। काली बिल्ली सफेद बिल्ली की दोस्ती में धीरे-धीरे तरह-तरह के कामचोरी के बहने बनाकर अकर्मण्य सफेद बिल्ली काली बिल्ली के सारे संसाधनों का अपनी मन मुताबिक प्रयोग करना शुरू कर देती है। मुसीबत तो तब आती है जब काली बिल्ली के जन्म-दिवस के अवसर पर सभी जानवर दोस्तों के लुका-छिपी खेलते समय खीर चाटने का भंडाफोड़ हो जाता है और वह लज्जित होकर उसके घर से निकलने पर विवश हो जाती है,मानो वह जा रही हो बड़े बेआबरू होकर। कथानक की संवेदनशीलता, शब्दों का प्रयोग तथा भाषा की सरलता बाल पाठकों को बरबस पढ़ने के साथ-साथ उसे याद रखने के लिए असरदार साबित होती है।चिडि़या चुग गई खेतकिसी मुहावरे की आधी पंक्ति है। पूरी पंक्ति इस तरह होती है- अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गई खेत। चुन्नू चूहा अपने बड़ों तथा समव्यस्कों की सलाह का निरादर कर उन्मुक्त जीवन जीना चाहता है, आसन्न खतरों से बेपरवाह हुए। नतीजा यह होता है, वह अपने जीवन को खतरनाक संकट में डाल देता है। विमला भंडारी की यह कहानी बचपन से ही दूरदर्शी सतर्क जीवन दर्शन का बीजारोपण करती है। न केवल बड़ो की सही सलाह का आदर करना वरन संकट के आकलन में अपनी बुद्धि के इस्तेमाल के साथ दूरदर्शिता का आवाहन करने वाली यह कहानी हितोपदेश की किसी कहानी से कम नहीं हो सकती है।
गप्पी और पप्पीदो मेढ़कियों द्वारा कुकरमुत्ते की नांव बनाकर पानी में सैर करने की ऐसी कहानी है, जो न केवल पाठकों को नौका-विहार का अहसास  करवाती है, वरन दुख के समय धीरज रखने की सलाह भी देती है। तुलसीदास ने रामचरित मानस में सही कहा हैं,
"धीरज,धर्म,मित्र अरु नारी;आपदकाल परखेऊ चारी"
वे मेढ़कियों बच्चों से अपने आपको बचाने के लिए ग्वालिन की टोकरी में छुप जाती हैं, जिसे वह लेकर अपने घर चली जाती है और वे दोनों वहां दही की हांडी में फंस कर रह जाती है। उस अवस्था में अगर वे हिम्मत हार जाती तो शायद जिन्दा नहीं बचती। ऐसी घड़ी में अपनी शारीरिक क्षमताओं का भरपूर प्रयोग कर उनके अनवरत तैरने के कारण दही बिलोकर छाछ बन जाता है और जिस पर तैरते हुए उनके लिए अपनी जान बचाना उतना ही सुगम हो जाता है।
विज्ञान की भाषा का भी लेखिका ने भरपूर प्रयोग किया है, जैसे- 'आंखों पर पारदर्शी झिल्ली चढ़ा दो', 'हमारी अंगुलियों के बीच जाली बनी हुई है। इसी कारण तो हम चप्पुओं की तरह आसानी से पानी को ठेलकर चलाकर तैर लेती है।' इन कथनों के माध्यम से बाल जिज्ञासा को वैज्ञानिक तरीके से संतुष्ट करने का लेखिका ने अथक मनोवैज्ञानिक प्रयास किया है कि मेढ़क की आंखों पर पलकें नहीं होती है, एक पारदर्शी झिल्ली अवश्य होती है। ठीक उसी तरह अंगुलियों के बीच की जाली मेढ़क के लिए गाढ़े द्रव्य में तैरने में सहायक होती है। इस प्रकार के प्रयोग बाल साहित्य में अत्यन्त ही अनुपम तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने वाले होते है। विज्ञान की पृष्ठभूमि होने के कारण लेखिका इस प्रकार के मौलिक प्रयोग बड़ी सहजता से करती है। 

6. मजेदार बात
  प्यारा तोहफाअत्यन्त ही प्यारी बाल-कहानी है, जिसमें एक मां अपने दोनों झगड़ालू बच्चों को शांति से रहना सिखाना चाहती है मगर वह ऐसा नहीं कर पाती है। उसके जन्म दिन के अवसर पर दोनों बच्चे अपनी तरफ से तोहफा देना चाहते हैं मगर वे अपने इच्छित तोहफे लाने में विफल हो जाते है। साथ ही साथ, जानलेवा खतरों से संघर्ष करते है। ये खतरे उन्हें एक साथ रहने के लिए प्रेरित करते है। जब यह बात मां को पता चल जाती है तो वह अत्यन्त खुश हो जाती है कि उसके जन्म-दिवस पर उससे बढ़कर और क्या प्यारा तोहफा हो सकता है। सामाजिक व पारिवारिक मूल्यों को प्रतिपादित करती यह कहानी अपने आप में अनोखी है कि किस तरह कभी-कभी आपदाएं अथवा विपदाएं मिल-जुलकर कार्य करने के साथ-साथ आत्मावलोकन करने में खरी उतरती है।
   लगन रंग लाईकहानी में पूसी बिल्ली चंपक वन की भूरी बिल्ली के बेटे शेरू को फूलों की माला गूंथने की कला सिखाने से इंकार कर देती है, जिसमें उसे महारत हासिल होती है। यह कहकर कि यह कला वह सिर्फ बिल्लियों को ही सिखाती है, बिल्लों को नही। इस अवस्था में बिना हिम्मत हारे शेरू पूसी बिल्ली को मनाने का प्रयास करता है। मना करने के बावजूद भी वह पूसी बिल्ली के घर के बाहर खड़ा रहकर माला गूंथते देखकर उसे सीखने का प्रयास करता है। काम खत्म कर जब पूसी बिल्ली विश्राम करने जाती है तो वह उसके कमरे की सफाई करने लगता है। इस तरह वह पूसी बिल्ली का दिल जीत लेता है और काम करने की लगन देखकर उसे तरह-तरह के गजरे, वेणी, गुलदस्ते व मालाएं बनाना सिखाती है और देखते ही देखते वह अपने काम में महारत हासिल कर लेता है। कहने का अर्थ है अगर कोई भी शिष्य सीखना चाहता है तो उसके मन में विनीत भाव होने के साथ-साथ समर्पणशीलता, लगन तथा सेवा करने की अदम्य उत्कंठा होनी चाहिए जो गुरु का मन उस तरफ आकर्षित कर सके। गीता के अध्याय चार  के 34वें श्लोक में आता है-
 ‘‘तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यंति ते ज्ञानम ज्ञानिनस्त्त्वदर्शिन:"
  गुरुकृपा व गुरु-आशीर्वाद पाकर दुनिया के महान से महान काम करना क्षण भर में संभव है। जब विवेकानन्द को रामकृष्ण परमहंस जैसा गुरु मिले या यूं कहा जाए जब रामकृष्ण परमहंस को विवेकानन्द जैसे समर्पणशील व सेवा भावी शिष्यगण मिला तो उसने अपने गुरु की आज्ञा का पालन कर उनकी शिक्षाओं सभी दिगंत में प्रचुरता के साथ फैला दिया, जिसका डंका आज भी सारे विश्व में सुना जा सकता है। डॉ. विमला भंडारी की कहानियां गागर में सागरभरने जैसी होती है, जो अपने कलश में सारे संस्कारों को उफनते समुद्र को समाहित कर सार्वभौमिक नीति शास्त्रों को विश्व परिदृश्य में प्रस्तुत करती है। उनके कलश का एक एक मोती बाल चेतना को स्फुल्लिंग को दैदीप्यमान करने में सक्षम है। बालमन की निश्छल,कोमल,सजग और जिज्ञासु प्रवृत्ति को सहज और सरल व्यंजना के साथ सुलझाने का सामर्थ्य रखने वाली लेखिका विमला भण्डारी ने बाल-मन की गुत्थियों को क्रमवार सुलझाते हुए जिस प्रकार का बाल-साहित्य दिया है, निःसंदेह उसकी श्रेष्ठता कालजयी है।

6.अनमोल भेंट (राजस्थानी भाषा)
  डॉ॰ विमला भण्डारी का राजस्थान साहित्य कादमी से पुरस्कृत राजस्थान बाल-कहानी-संग्रह अनमोल भेंट शिक्षाप्रद,प्रेरक-यात्रावृत और वैज्ञानिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ सामाजिक, पारिवारिक रिश्तों और आपसी मतभेद आदि के आधार पर बने कथानकों से गुंथी हुई एक अनोखी माला है। यह कहानी-संग्रह 2011 में अनुपम प्रकाशन, उदयपुर से प्रकाशित हुआ। इस कहानी-संग्रह में कुल 11 कहानी हैं।
कहानी मुसीबत सूं मुकाबलों में एक छोटी लड़की शानू के खाट के नीचे अचानक किसी मगरमच्छ के आ जाने पर निडरता पूर्वक उस परिस्थिति का सामना करते हुए दरवाजे पर चिटकनी लगाकर बाहर जाकर लोगों से मदद मांगना और जब उस मगरमच्छ को रस्सियों और सांकलों से बांधकर घिसते हुए बाहर निकालते समय उसका खून से लथपथ शरीर देखकर उसके मन में दया का भाव उभरना इस कथानक की प्रमुख विशेषता है। मुसीबतों से मुकाबला करते-करते मनुष्य को किसी भी हाल में न तो अपना संयम खोना चाहिए और न ही उनमें मानवीय गुणों व संवेदनाओं का ह्रास होना चाहिए। इस प्रकार विमला भण्डारी की यह कहानी बच्चों में बचपन से ही दुर्दिनों का सामना करने के संस्कारों के बीज रोपती है।
वह रे दीनू कहानी में एक निर्धन प्रतिभावान छात्र दीनू को अपने प्रधानाचार्य की सेवा-निवृत्ति पर उपहार स्वरूप देने के लिए कुछ भी पैसा देने में असमर्थ उसके पिताजी अमरूद का पौधा उपहार  देने के लिए प्रदान करते है। यह उपहार प्रधानाचार्य को बहुत पसंद आता है और वह सारे बच्चों को पर्यावरण के बारे में वृक्षारोपण की महत्ता को प्रकाश डालते हैं। इस तरह यह प्रधानाचार्य के लिए एक अनमोल भेंट बन जाती है, जो कि इस कहानी संग्रह का शीर्षक है। दिनचर्या की छोटी-छोटी बातों की खोज करना लेखिका की सूक्ष्म अन्वेषी दृष्टि को दर्शाती है।
तीसरी कहानी आ धरती मीठा मोरा री कहानी में लेखिका ने भारतीय संस्कृति, परिवेश की तुलना विदेश की धरती अमेरिका से तुलना करते हुए यह सिद्ध किया है कि भले ही विदेशी लोग विकसित हो, मगर भारतीय संस्कार, साहचर्य और सहयोग भावना से वे कभी भी उन्नत नहीं हो सकते। इस प्रकार यह कहानी न केवल स्वदेश प्रेम की भावना को बलवती करती है,बल्कि भारतीय संस्कारों की बची-खुची पूंजी को भी अक्षुण्ण रखने के लिए बाल-मन को प्रेरित करती है।
समझ ग्यो स्टीफन कहानी में स्टीफन शिमला जाना चाहता है, अपने माँ के साथ। मगर उसी दौरान उसकी दादी गिर जाती है और उसकी हड्डी में क्रेक आ जाती है। इसीलिए उसकी माँ शिमला जाने का प्रोग्राम स्थगित कर देती है। मगर स्टीफन इस स्थगन पर राजी नहीं होता है। तब उसकी माँ उसे याद दिलाती है कि अगर वह गिर जाती तो भी क्या वह शिमला जाने कि जिद्द करता ? उस पर स्टीफन समझ जाता है और शिमला जाने का प्रोग्राम रद्द कर देता है। लेखिका ने इस कहानी के माध्यम से पारिवारिक रिश्तों में सुदृढ़ता लाने के लिए संवेदनाओं के प्रति बचपन से ही बच्चों को प्रेरित करने का एक सफल प्रयास किया है।
उदयपुर री सैर कहानी में लेखिका ने विश्व-प्रसिद्ध पर्यटक स्थल उदयपुर के दर्शनीय स्थानों का आकर्षक वर्णन करते हुए वहाँ के नैसर्गिक प्राकृतिक सौन्दर्य, ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ व्यापारिक गतिविधियों की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। झील की नगरी उदयपुर की शिल्पकला, जल-संग्रह की वैज्ञानिक तकनीक, फतह सागर, मोती गरी पर महाराणा प्रताप की प्रतिमा, पिछौला झील, हाथी पोल, लेक पैलेस, दूध तलाई पार्क का म्यूजिकल फाउंटेन व 'रोप वे' के साथ-साथ वहाँ की जूतियों और बंधेज की चुंदड़ी के बारे में बताना न भूलते हुए लेखिका ने  बच्चों की जिज्ञासा,उत्सुकता और प्रकृति के प्रति प्रेम भाव को बलवती करने का सशक्त प्रयास किया है।
राति आंखां कहानी में लेखिका ने जैसा बाप वैसा बेटा उक्ति को चरितार्थ करने का प्रयास किया है। एक शराबी बाप की लाल-लाल आँख देखकर उसका बेटा सोनू अपनी आँखें लाल करने के लिए घर की आलमारी से 5000 रुपये चोरी कर शराब पीना शुरू करता है। जब उसकी चोरी का पर्दाफाश होने लगता है तो वह घर से भाग जाता है और सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाता है। यह देखकर शराबी पिता के मन में पश्चाताप होने लगता है। लेखिका बच्चों में सार सार को महि रहे, थोथा दहि उड़ाएतथा 'यानि अस्माकम सुचरितानी तानि उपस्यानि नो इतराणी' उक्ति को चरितार्थ करते हुए उन्होंने अच्छे गुणों को स्वीकार करने तथा दुर्गुणों का परित्याग करने का संदेश देती है।
मोबाइल री गाथाकहानी में एक लड़की तान्या को मोबाइल खरीदने के प्रति क्रेज को देखकर उसके पिताजी उसके लिए एक मोबाइल खरीद लेते है, मगर वह उसे संभाल नहीं पाती है और वह खो जाता है। इस पर लेखिका यह प्रकाश डालना चाहती है कि एक दूसरे के देखा-देखी अथवा नई-नई चीजों के प्रति बच्चों में उत्सुकता की वजह से वे कई बार बाल-हठ कर लेते हैं। मगर इसका यह अर्थ नहीं है कि माँ-बाप उनकी सारी मांगों का पूर्ति करें। होना यह चाहिए कि वे अपने बच्चों को अपनी आर्थिक, पारिवारिक स्थिति के साथ-साथ अपने इर्द-गिर्द वातावरण के खतरों से भी समझदारी पूर्वक सचेत करें ताकि भविष्य में वे कभी भी अनिश्चितता के खतरों से जूझते हुए किसी भी प्रकार का खतरा मोड़ नहीं ले।
भाई बहनकहानी में घर में भाई बहन के पारस्परिक झगड़ों के कारण जब बहन की विवेकानंद की पेंटिंग खराब हो जाती है और वह फिर से उसे बनाना नहीं चाहती है तब उनकी माँ विवेकानंद की उस पेंटिंग पर प्रेरणादायक विचार प्रस्तुत करती है कि किस तरह 11 सितंबर 1893 को उन्होंने शिकागो में विश्वधर्म सम्मेलन में सारे अमेरिका वासियों का मेरे प्यारे भाई बहनों के सम्बोधन से उनका दिल जीत लेते हैं। कहने का अर्थ भाई बहन सम्बोधन के मर्म में छुपा हुआ प्रेम में विश्वविख्यात बना देता है। इस सीख के माध्यम से वह भाई बहन बीच में सुलह करा देती है। इस तरह भारत के महान व्यक्तित्वों के दृष्टान्तों के माध्यम से लेखिका ने उस पृष्ठभूमि को तैयार करने का सफल प्रयास किया है जिसमें पारिवारिक संबंधों की सुदृढ़ता से वसुधैव कुटुंबकम विचारधारा व संकल्प में परिणित किया जा सकता है।
किस्तर व्हियोंकहानी में लेखिका ने मकर-संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने के दौरान किसी लड़के के छट की मुंडेर से गिर कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर उसका सारा दोषारोपण उसके मित्रो पर मढ़ दिया जाता है कि उसने उसको छत से धक्का दिया होगा अन्यथा ऐसे कैसे हो गया। लेखिका ने पतंग उड़ाने के दौरान गिर जाने वाली सावधानियों का उल्लेख करते हुए छोटे-छोटे बच्चों को यह शिक्षा देने का प्रयास किया है कि वे हमेशा कोई भी कार्य  हो सावधानी से करें और किसी पर भी झूठा आरोप न मढ़े
कठ्फूतली री मानकहानी में कठपुतली के खेल के माध्यम से लेखिका ने प्रौढ़-शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है। इस कहानी में यह दर्शाया गया है किस तरह एक पढ़ा-लिखा आदमी को चलाखी से मूर्ख बनाकर ज्यादा पैसा ऐंठ लेते हैं। अतः प्रौढ़-शिक्षा भी उतनी ही जरूरी है, जितनी बाल-शिक्षा।
जस जसो नामकहानी में भाँप के इंजन के आविष्कार कर्ता जेम्स वाट की सूक्ष्म अन्वेषण दृष्टि से केतली में बनने वाली भाप से ढक्कन को उड़ते देख भाप के इंजिन का विचार उसके मन में आ जाता है जिससे वह ल्यूनर सोसाइटी के सदस्य बर्मीघम के प्रसिद्ध उद्योगपति मेथ्यु बोलटन के साथ मिलकर भाप इंजिन का निर्माण करते हैं। लेखिका विज्ञान की छात्रा होने के कारण अपनी बाल-कहानियों में विज्ञान की चीजों की खोज जैसे बिजली, फोन, फिल्म, टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर, इन्टरनेट आदि के बारे में बहुत ज्यादा जिक्र किया है। लेखिका का मुख्य उद्देश्य बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करने के साथ-साथ उनमें नए आविष्कारों के लिए आवश्यक अन्वेषण के दृष्टि को पैदा करना है।
अंत में यह कहा जा सकता है कि यह कहानी-संग्रह वास्तव में बाल-जगत के लिए एक अनमोल भेंट है, मेरा तो यह भी सोचना है कि अगर इस कहानी-संग्रह का देश की विभिन्न प्रांतीय भाषाओं में अनुवाद होता है तो न केवल सम्पूर्ण देश के बाल जगत को इस दिशा में एक नई दृष्टि प्राप्त होगी।   

































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