प्रस्तावना
प्रस्तावना
बोधि
प्रकाशन, जयपुर से
प्रकाशित‘‘उत्पल’’ पत्रिका (वर्ष-4, अंक-6, दिसंबर-2013) में छपे डॉ॰ आशीष सिसोदिया के आलेख "दक्षिण राजस्थान का हिन्दी
बाल साहित्य" में आदरणीय
विमला भंडारी जी का नाम पढ़ा तो मेरा मन गौरव से खिल उठा। कुछ अंश आपके समक्ष
दृष्टव्य है:-
‘‘ इस काल के बाल-साहित्य की
सभी विधाओं में गुणातीत वृद्धि हुई है......प्रारंभ से लेकर अब तक दक्षिण राजस्थान
के बाल साहित्य के प्रति सक्रिय लेखकों में विमला भंडारी का नाम उल्लेखनीय है।
श्रीमती विमला भण्डारी ने वैज्ञानिक बाल-कथा लेखन के क्षेत्र में नाम कमाया है।
.... (उत्पल पत्रिका पृष्ठ 19 व 21 से तक )"
इस आलेख ने
मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने मन ही मन उनके ऊपर एक पुस्तक "डॉ॰ विमला भण्डारी की
रचना-धर्मिता" शीर्षक नाम
से लिखने का संकल्प किया। उनका समग्र साहित्य के अध्ययन करने के उपरांत लगभग दो
साल के अथक प्रयास के बाद यह संकल्प पुस्तक का साकार रूप लेकर आपके हाथों में हैं।
ऐसे भी बाल-साहित्य
जगत को अपनी एक दर्जन पुस्तकों से समृद्ध करने वाली विमलादी को मूल रूप से
राजस्थान का निवासी होने के नाते मैं उन्हें अपनी बड़ी बहन व गुरू के समान मानता
हूं। साहित्य जगत
में डॉ॰ विमला दीदी एक जाना-पहचाना नाम हैं,जो संवेदना से कहानीकार, दृष्टि से
इतिहासकार, मन से बाल
साहित्यकार और सक्रियता से सामाजिक कार्यकर्ता है। हिन्दी और राजस्थानी दोनों भाषाओँ
में अपने सक्षम लेखन-कार्य के लिए जाने-पहचाने इस व्यक्तित्व की कहानियों में
नारीत्व का अहसास, सूक्ष्म
निरीक्षण शक्ति, गहरा
जीवनबोध तथा कलात्मक परिधियों को ऊंचाई तक पहुंचा पाने का अनूठा कौशल कहानीकार की
हर रचना को अविस्मरणीय बना जाता है। बाल-संवेदनाओं की सूक्ष्म से सूक्ष्म झलक उनके बाल-साहित्य, कहानी तथा उपन्यास में स्पष्ट अभिव्यक्त
होती है। उनकी लेखन सक्रियता और प्रतिबद्धता के चलते राजस्थान साहित्य अकादमी की
मासिक पत्रिका मधुमती के नवंबर अंक का बतौर अतिथि संपादक के उन्होंने सम्पादन
किया। राजस्थान के बाल साहित्य को लेकर प्रसिद्ध रचनाकार चित्रेश के शब्दों में
इसे ऐतिहासिक महत्व का आंका गया। वहीं डॉ. श्याम मनोहर व्यास के विचार में यह अंक
बाल साहित्य में शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी बन पड़ा है। पिछले वर्ष 2014 के छः-सात माह में
साहित्यकुंज, साहित्य-अमृत, सरिता, बालहंस, ज्ञान-विज्ञान
बुलेटिन, जागती-जोत
और राजस्थान-पत्रिका आदि में विमलादी की कहानी, बाल-कहानी और शोध-आलेख प्रकाशित हुए है, पर एन.बी.टी. के राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से प्रकाशित उनकी बाल पुस्तक ‘‘किस हाल में मिलोगे दोस्त’’ विशेष उल्लेखनीय बन पड़ी है।
एन.बी.टी. के पत्र संवाद में इसके कथानक को रेखाकिंत किया है।
सिरोही
राजस्थान में सन 1968 में जन्म
लेने और जोधपुर की मगनीराम बांगड मेमोरियल इंजिनयरिंग कॉलेज से सन 1993 में खनन अभियांत्रिकी की शिक्षा प्राप्त करने के बाद
विगत 20 वर्षो से
मैं राजस्थान से बाहर ओड़िशा में कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी महानदी कोलफील्ड्स
लिमिटेड में तालचेर में स्थित लिंगराज खुली खदान में बतौर वरीय प्रबन्धक(खनन) की
पोस्ट पर काम करता हुआ राजस्थान प्रवासी की श्रेणी में आ चुका हूं। सन 2007 में मेरे अपने ब्लॉग (ओड़िया
से हिन्दी में अनुवाद ) "सरोजिनी
साहू की श्रेष्ठ कहानियाँ" की वजह से
मैं विमलादी के संपर्क में आया। दीदी को सरोजिनी साहू की कहानियाँ बहुत पसंद आई, मेरा अनुवाद भी। उसके बाद विमलादी ने मुझे बहुत
प्रोत्साहित किया मेरे सर्जन-कार्य को आगे बढ़ाने के लिए। मैंने सरोजिनी साहू के
ओड़िया उपन्यास 'पक्षीवास' का हिन्दी में अनुवाद कर उसकी पाण्डुलिपि को एडिट
करने व मुखबन्ध लिखने का अनुग्रह करते हुए सलूम्बर जाकर उन्हें थमा दी। दीदी अपने
अनेकों कार्यक्रम में व्यसत होते हुए भी मेरी बात टाल न सकी, बल्कि खुले हृदय से आशीर्वाद दिया। बहुत ही बारीकी से
उन्होंने एडिटिंग की, और साथ ही
साथ एक अत्यंत ही रोचक, प्रभावशाली
व हृदयस्पर्शी भूमिका लिखी, जो मेरे लिए
आज भी बहुत बड़े गौरव की बात है। आज भी सात साल पुरानी सलूम्बर की वह यात्रा याद
आती है! हाथ में पाण्डुलिपि, दीदी का
मुस्कराता हुआ चेहरा, सलूम्बर का
हाड़ीरानी के सतीत्व व त्याग की याद दिलाता वह किला, रात में रोशनियों के प्रतिबिंबों से झिलमिलाती वहाँ की पोखरी झील और कीमती
लकड़ी के बीम पर बना हुआ दीदी का भव्य मकान और उनका पोथियों से भरा हुआ सजा-धजा
अध्ययन-कक्ष। मनोहर चमोली ‘मनु’ के शब्दों में कहूं तो- ‘‘हम उन्हें
सर उठा कर देखना चाहेंगे इतना कि हमें आसमान में देखना पड़े तब जाकर उनका चेहरा
दिखाई दें....मुझे विश्वास है ऐसी ही है हमारी विमलादी। यद्यपि साहित्य में आपकी
विशेष रुचि बाल, एवं इतिहास
लेखन में हैं,तथापि आपने
साहित्य की अनेक विधाओं में जैसे इतिहास, कहानी, कविता,उपन्यास, नाटक, फीचर,लेख तथा शोध-पत्र प्रस्तुत कर भारतीय साहित्य को
सुसमृद्ध किया हैं। बाल-साहित्य जगत में आपने 'बालोपयोगी कहानियां’, 'करो मदद
अपनी,'जंगल उत्सव','मजेदार बात','बगिया के फूल','प्रेरणादायक बाल-कहानियाँ','सुनहरी और सिमरू','सितारों से आगे','ईल्ली और नानी'तथा 'किस हाल में मिलोगे दोस्त'जैसी अनमोल
कृतियाँ प्रदान की है। किशोर-साहित्य मे 'कारगिल की घाटी' उपन्यास
प्रकाशन से पूर्व ही बहुचर्चित रहा हैं। प्रौढ़-साहित्य वर्ग में उनके कहानी-संग्रह 'औरत का सच', 'थोड़ी सी जगह',तथा 'सिंदूरी पल' ने हिन्दी
साहित्यिक जगत में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया हैं।ऐतिहासिक लेखन में ‘सलूंबर का इतिहास (मेवाड़ का प्रमुख ठिकाना)’ एक प्रामाणिक ऐतिहासिक पुस्तक होने के साथ-साथ
राजस्थान के इतिहास के गौरव को
उजागर करने वाला मील का पत्थर साबित हुआ। राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक
गहलोत ने इस कृति पर अपना अभिमत निम्न शब्दों में प्रस्तुत किया:-
"मुझे
विश्वास है कि यह कृति हाड़ी रानी के शौर्य ,त्याग एवं बलिदान से गौरवान्वित सलूम्बर के इतिहास ,संस्कृति
एवं सामाजिक सरोकारों और विकास का विविध आयामी ज्ञान करने वाली तथा इतिहासकार ,शोधकर्ता एवं विद्यार्थियों के लिए उपयोगी होगी।"
राजस्थानी
साहित्य में आपका अनूदित उपन्यास 'आभा' बहु-चर्चित
रहा। साथ ही साथ, राजस्थान की
क्षत्राणियों के सतीत्व को उजागर
करने वाले राजस्थानी नाटक 'सत री सैनानी' के माध्यम से मेवाड़ की वीरांगना हाडीरानी के गौरवमयी इतिहास को जन-जन के समक्ष लाने का प्रयास किया किया
हैं। इस गौरव को व्यापक रूप देने के लिए आपने इस नाटक का हिन्दी में "माँ !तुझे
सलाम" के नाम से
रूपांतरण किया गया, जिसमे परंपरागत चारण-चारणी के
माध्यम से प्रस्तुत किया गया सतत
कथा-प्रवाह धर्मवीर भारती
के 'अँधा-युग' की याद दिला देता है। इसके अतिरिक्त, इस पुस्तक में आपकी कुछ कविताओं की भी समीक्षा की गई
है तथा आपके सम्पादन में स्वतन्त्रता सेनानी मुकुन्द पंडया की डायरियों पर आधारित
पुस्तक 'आजादी की
डायरी' पर अलग
अध्याय में विवेचना की गई है तथा अंत में उनके जीवन-वृत पर भी एक अध्याय जोड़ा गया,ताकि हिन्दी के नए पाठक उनके बारे में कुछ जान सकें।
साहित्य
अकादमी, नई दिल्ली
के वर्ष 2013 में बाल
साहित्य (राजस्थानी भाषा) पुरस्कार ग्रहण करने के अतिरिक्त अपने अमूल्य योगदान के
लिए आपको अनेकों राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय पुरस्कारों तथा सम्मानों से नवाजा गया
हैं। राजस्थान साहित्य अकादमी के शम्भूदयाल सक्सेना पुरस्कार (सन् 1994-95) 2011-12 में
राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं
संस्कृति अकादमी का जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य पुरस्कार, वर्ष 2012-13 में बालवाटिका का किषोर उपन्यास पुरस्कार, बालसाहित्य संस्थान उत्तराखण्ड से बाल उपन्यास पुरस्कार और साहित्य समर्था पत्रिका का श्रेष्ठ
कहानी पुरस्कार आपको इसी वर्ष में मिले। राष्ट्रीय बाल शिक्षा एवं बाल कल्याण
परिषद का लाडनू श्यामा देवी कहानी पुरस्कार (सन् 2001-02) द्वारा आपको केंद्र तथा राज्य सरकार ने विभूषित किया।
इसके अलावा, कई विशिष्ट सम्मान जैसे युगधारा सृजन धर्मिता सम्मान
(सन् 1995, 2008), राष्ट्रकवि
पंडित सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य में विशेष सम्मान (सन् 2000), हिन्दी दिवस पर राजस्थान
साहित्य अकादमी द्वारा विशेष सम्मान(सन् 2003), 2011 में भारतीय बाल कल्याण परिषद, कानपुर उ.प्र. द्वारा सम्मान 2011 बाल कल्याण
एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र, भोपाल.
म.प्र. द्वारा सम्मान-पुरस्कार 2013 आदर्श
क्रेडिट कॉपरेटिव सोसायटी लि. उदयपुर शाखा. अन्र्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मान 2014 मीरा नोबल साहित्य पुरस्कार, उदयपुर 2015 में लाॅयन्स साहित्य सृजन सम्मान आपको मिले है।
गणतंत्र
दिवस पर सलूंबर नगर द्वारा विशेष सम्मान (सन् 1995, 2003), हाड़ारानी गौरव संस्थान सलूंबर द्वारा विशेष सम्मान
(सन् 2007) के अतिरिक्त
कई सरकारी,अर्द्ध-सरकारी
, गैर सरकारी
तथा सामाजिक संस्थाओं
जैसे नगरपालिका कानोड़ , नेहरु युवा
संगठन ईटाली खेड़ा एवं रोशनलाल पब्लिक स्कूल द्वारा समय-समय पर सम्मानित हो चुकी हैं। इतिहास मे विशेष रुचि
होने की वजह से आपने समय-समय पर अपने दो दर्जन से ज्यादा शोध-पत्र राजस्थान के
ठिकानों एवं घरानों की पुरालेखीय सामग्री, देशी रियासतों में स्वतंत्रता आंदोलन, युग-युगीन मेवाड़ एवं मेवाड़ रियासत तथा जनजातीय आदि विषयों पर प्रताप शोध
प्रतिष्ठान, उदयपुर, मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय,माणिक्यलाल वर्मा राजस्थान विद्यापीठ, जवाहर पीठ कानोड, राजस्थानी भाषा साहित्य अकादमी, ज्ञानगोठ इन्स्टीटयूट ऑफ राजस्थान स्टडीज, राजस्थान विद्यापीठ उदयपुर , नटनागर शोध संस्थान सीतामई मध्यप्रदेश, आई.सी.एच.आर. नई दिल्ली, में वाचन
एवं प्रकाशन प्रस्तुत कर
ऐतिहासिक तथ्यों की विस्तृत जानकारियों को नया कलेवर प्रदान किया । समय-समय पर देश
की प्रसिद्ध पत्रिकाओं मज्झमिका, महाराणा प्रताप, जर्नल ऑफ राजपूत
हिस्ट्री एन्ड कल्चर, चंडीगढ़ तथा
इंस्टीट्यूट ऑफ राजस्थान स्टडीज, जनार्दन राय
नागर राजस्थान विद्यापीठ की शोध-पत्रिकाओं में आपके आलेख प्रकाशित होते रहे हैं।
साहित्य-साधना
की रजत-जयंती पूरी करने वाली विमला दीदी के समग्र साहित्य की एक संक्षिप्त झलक आप
इस पुस्तक के माध्यम से देख सकेंगे और साथ ही साथ, उनकी साहित्यिक कृतियों के मूल्यांकन व विश्लेषण के द्वारा उनकी संवेदना,चिंतन व विचारधारा से आप परिचित हो सकेंगे। मुझे
विश्वास है कि प्रस्तुत कृति साहित्य प्रेमियों,शोधार्थियों और आमजन हेतु उपयोगी सिद्ध होगी।
दिनेश कुमार
माली
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